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(पोकरणा) (८) विरहट (भूरंट) (९) श्रेष्टि (वैद्य मेहता) एवं नव गोत्र वाले स्नात्रीय प्रभु प्रतिमा के दक्षिण-जीमण तरफ पुजापा का सामान लिये खडे थे ।
(१) सूंचिति (संचेती) (२) आदित्यनाग (चोरडिया') (३) भूरि (भटेवरा) (४) भाद्रो (समदड़िया) (५) चिंचट (देसरड़ा) (६) कुमट (७) कन्याकुब्ज (कनोजिया) (८) डिडू (कोचर मेहता) (९) लघु श्रेष्टि (वर्धमाना) एवं नव स्नात्रीय पञ्चामृत लिए महावीर मूर्ति के वाम-डावे पासें खड़े थे।
यह कथन केवल उपकेशपुर के महाजन संघ का ही है, जिसमें भी स्नात्रीय बने थे उन्हों के गौत्र है पर इनके सिवाय उपकेशपुर में तथा अन्य स्थानों में बसने वाले महाजनों के क्या क्या गोत्र होंगे उनका उल्लेख नहीं मिलता है, तथापि सम्भव है कि इतने विशाल संघ में तथा तीन सौ वर्ष जितने लम्बे समय में कई गोत्र हुए ही होंगे। यदि खोज करने पर पता मिलेगा उनको भविष्य में प्रकाशित करवाया जायेगा।
उपरोक्त गोत्र एवं जातियों के अलावा भी जैनाचार्यों ने राजपूतादि जातियों की शुद्धि कर महाजन संघ (ओसवाल वंश) में शामिल मिला कर उसकी वृद्धि की थी जैसे कि
१. आर्य गोत्र-लुनावत शाखा-वि. सं. ६८४ आचार्य देवगुप्तसूरि ने सिन्ध का रावगौसलभाटी को प्रतिबोध कर जैन बना कर ओसवंश में शामिल किया, जिन्हों का खुर्शीनामा और धर्म कृत्य की नामावली जैन जाति महोदय द्वितीय खण्ड में दी जायेगी
"खरतर गच्छीय यति रामलालजी ने महाराज वंश मुक्तावली पृष्ठ ३३ में कल्पित कथा लिख वि. सं. ११९८ में तथा यति श्रीपालजीने वि. सं. ११७५ में जिनदत्तसूरि ने आर्य गोत्र बनाया घसीट मारा है। यह बिलकुल गप्प है। इससे पांच सौ वर्षों के इतिहास का खून होता
२. भंडारी-वि. सं. १०३९ में आचार्य यशोभद्रसूरि ने नाडोल के राव लाखण का लघुभाई राव दुद्धको प्रतिबोध कर जैन बनाया। बाद माता आशापुरी के भण्डार का काम करने से भंडारी कहलाया। जैतारण, सोजत और जोधपुर के भण्डारियों के पास अपना खुर्शीनामा आज भी विद्यमान है।
"खरतर. यति रामलालजी ने महा. मुक्ता. पृष्ठ ६९ पर लिखा है कि वि. सं. १४७८
१. गुलेच्छा, पारख, गदइया, सावसुखा, बुचा, नाबरिया, चौधरी, दफ्तरी वगैरह भी
आदित्यनाग गौत्र की शाखाए हैं।