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चेतनाकेतनाचित्रहेतुश्चैत्याबहिर्ययौ ॥ १३८ ॥ पश्यन्तस्ताञ्च गच्छन्तीं प्रवीणाः ब्राह्मणास्तदा । दध्युरध्युषिता रात्रौ मृता चैत्यात्कथं निरैत् ॥ १३९ ॥ नाऽणुकारणमत्राऽस्ति, व्यसनं दृश्यते महत् । अबद्धा विप्रजातिर्यद् दुर्ग्रहा बटुमण्डली ॥ १४० ॥ एवं विमृशतां तेषां गौब्रह्मभवनोन्मुखी ।
खत्पदोदयापित्र्यस्नेहेनेव हृता ययौ ॥ १४१ ॥ यावत्तत्पूजकः प्रातारमुद्घाटयत्यौ । उत्सुका सुरभिर्ब्रह्मभवने तावदाविशत् ॥ १४२ ॥ खेटयन्तं बहिः शृङ्गयुगेनाऽमुं प्रपात्य च । गर्भागारे प्रविश्याऽसौ ब्रह्ममूर्तेः पुरोऽपतत् ॥ १४३ ॥ तद्ध्यानं पारयामास, जीवदेवप्रभुस्ततः । पूजको झल्लरीनादान्महास्थानममेलयत् ॥ १४४ ॥ विस्मिताः ब्राह्मणाः सर्वे मतिमूढास्ततोऽवदन् । तदा दध्युरयं स्वप्नः सर्वेषाञ्च मतिभ्रमः ॥ १४५ ॥
___ "प्रभाविक चरित्र, पृष्ठ ८७" उपर्युक्त प्रमाण से स्पष्ट सिद्ध है कि गाय की घटना जिनदत्तसूरि के साथ नहीं पर वायट गच्छीय जिनदत्तसूरि के पट्टधर जीवदेवसूरि के साथ घटी थी जिस को खरतरोंने अपने जिनदत्तसूरि के साथ जोड़ कर दादाजी की मिथ्या महिमा बढाइ है। क्या खरतर इस विषय का कोई भी प्रमाण दे सकते हैं? जैसा हमने प्रभाविक चरित्र का प्राचीन प्रमाण दिया है।
दीवार नंबर ६ कई खरतरों का यह भी कहना है कि दादाजी जिनदत्तसूरिने बिजली को अपने पात्र के नीचे दबाकर रख दी और उससे वचन लिया कि मैं खरतरगच्छवालों पर कभी नहीं पढूंगी इत्यादि।
समीक्षा-प्रथम तो इस कथन में कोई भी प्रमाण नहीं है, केवल कल्पना का कलेवर ही हैं। दूसरा यह कथन जैसा शास्त्रविरुद्ध है वैसा लोकविरुद्ध भी हैं, क्योंकि बिजली के अन्दर अग्निकाय की सत्ता है, वह काष्ठ के पात्र के नीचे दबाइ हुई नहीं रह सकती। तीसरा-बिजली के अन्दर जो अग्नि है वह एकेन्द्रिय होने के कारण उसके वचन भी नहीं है। इस हालत में वह दादाजी को वचन कैसे