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मन्दिर-मूर्तियें तोड़ते को वहां से भगाया? मेरे ख्याल से जिनदत्तसूरिने इन में से तो कुछ नहीं किया। हाँ, शायद उस समय जिनदत्तसूरि और जिनशेखरसूरि इन दोनों गुरुभाईयों में पारस्परिक द्वन्द्वता चल रही थी, इस कारण किसी जैन या हिन्दू देवताने तो जिनदत्तसूरि की सहायता न की हो और इस से उन यवन पीरों की साधना की हो तो बात दूसरी है, पर खरतरों को चाहिये कि वे दो बातों के प्रमाण बतलावें । एक तो यह बात किस प्राचीन शास्त्र में लिखी है कि जिनदत्तसूरिने पांच पीरों की साधना की और दूसरा उन पांच पीरों से उन्होंने क्या अभीष्ट सिद्धि की थी? यदि जिनशेखरसूरि के लिए ही पीरों को साधन किया हो तो उस समय जिनशेखरसूरि का समुदाय विद्यमान ही था। पीरों द्वारा उनको क्या नसियत दी?
दीवार नंबर ११ कई खरतर कहते हैं कि जिनदत्तसूरिने "स्त्रियों को जिनपूजा करने का निषेध किया है" इसलिए खरतरगच्छ में आज तक स्त्रियाँ पूजा नहीं करती हैं। यदि कोई तीर्थयात्रा वगैरह में अन्य गच्छीयों की देखादेखी पूजा करती भी हैं वे दादाजी की आज्ञा का भंग करती हैं। इत्यादि ।
समीक्षा-जिनदत्तसूरि के पूर्व तीर्थंकर, गणधर और सैकड़ों आचार्य हुए पर किसीने स्त्रीपूजा का निषेध नहीं किया। इतना ही क्यों पर जिनदत्तसूरि के गुरु जिनवल्लभसूरिने भी कई तरह की स्थापना उत्थापना की परन्तु स्त्रियों को प्रभुपूजा करने से तो उन्होंने भी निषेध नहीं किया। फिर समझ में नहीं आता है कि जिनदत्तसूरि को ही यह स्वप्न क्यों आया कि जो उन्होंने स्त्रीपूजा निषेध कर उत्सूत्र की प्ररुपणा की। शायद किसी औरत के साथ दादाजी का झगड़ा हो गया हो और दादाजीने आवेश में आकर कह दिया हो कि जाओ तुमको प्रभुपूजा करना नहीं कल्पता हैं। बाद लकीर के फकीरोंने इस बात को आग्रह कर पकड़ ली हो, जैसे कि कोई कोई हठधर्मी व्यक्ति खरपुच्छ पकड़ने पर नहीं छोड़ता है तो ऐसा संभव हो सकता है।
यदि ऐसा नहीं हुआ हो तो शास्त्रों में स्त्रीपूजा के खुल्लमखुल्ला पाठ होने पर भी फिर यह अर्द्ध दूढियों की प्ररुपणा दादाजी कभी नहीं करते और शायद दादाजीने किसी द्वेष के कारण यह कर भी दिया तो पिछले लोग सदा के लिए इसको पकड़ नहीं रखते । अब हम कतिपय शास्त्रों के प्रमाण यहाँ उद्धृत करते हैं।
१. श्री ज्ञातासूत्र में महासती द्रौपदीने जिनपूजा की है। २. उत्तराध्ययनसूत्र में महासती प्रभावतीने प्रभुपूजा की है। ३. श्री भगवतीसूत्र में मृगावती जयंतिने जिनपूजा की है।