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४. श्रीपाल चरित्र में मदनमञ्जूषा आदि स्त्रियोंने प्रभुपूजा और अंगीरचना की है।
५. राजा श्रेणिक की रानी चेलना हमेशां पूजा करती थी।
इत्यादि स्त्रियों की पूजा के प्रमाण लिखे जाय तो एक बृहद् ग्रंथ बन सकता है, पर इस बात के लिए प्रमाणों की आवश्यकता ही क्या है ? क्योंकि जहां श्रावकों को पूजा का अधिकार है वहां श्राविकाएँ पूजा करे इसमें शंका हो ही नहीं सकती है फिर समझ में नहीं आता है कि कहनेवाले युगप्रधान ऐसी उत्सूत्र प्ररुपणा कैसे कर सके होंगे? शायद यह कहा जाता हो कि कई विवेकशून्य औरतें प्रभुपूजा करते समय कभी कभी आशातना कर डालती हैं। इस लिये स्त्रीपूजा का निषेध किया है। पर विश्वास होता है कि यह कथन दादाजी का तो नहीं होगा क्योंकि एकाद व्यक्ति आशातना कर भी डाले तो सब समाज के लिए इसका निषेध नहीं हो सकता है। और यदि ऐसा हो सकता है तो फिर विवेकशून्य मनुष्यों से कभी आशातना होने पर मनुष्य जाति के लिये भी प्रभुपूजा का निषेध क्यों नहीं किया? अथवा यह हमारा तकदीर ही अच्छा था कि जिनदत्तसूरि एक स्त्रीपूजा का ही निषेध कर अर्द्ध ढूंढक बन गये। यदि किसी पुरुष को भी कभी आशातना करते देख लेते तो वे पुरुषों को भी प्रभुपूजा का निषेध कर आधुनिक ढूंढियों से ४०० वर्ष पूर्व ही ढूंढिये बन जाते । फिर यह भी अच्छा हुआ कि उस समय बारह करोड़ जैनों में से केवल विवेकशून्य सवा लाख जैन ही जिनदत्तसूरि के नूतन मत में सामिल हुए। खरतरों को यह सोचना चाहिये कि इस उत्सूत्र की प्ररुपणा कर आपके आचार्योंने ढूंढिया तेरहपंथियों से कम काम नहीं किया है। क्या आप अपनी मिथ्या प्ररुपणा को किन्हीं शास्त्रीय प्रमाणों से सिद्ध कर सकते हो?
दीवार नंबर १२ कई खरतर लोग यह भी कह देते हैं कि जिनदत्तसूरिने अमावस की पूर्णिमा कर बतलाई थी।
समीक्षा-यदि ऐसा हुआ भी हो तो इस में जिनदत्तसूरि की कौन सी अधिकता हुई ? कारण यह कार्य तो आज इन्द्रजालवाले भी कर के बता सकते हैं। क्या ऐसे इन्द्रजाल से आत्मकल्याण हो सकता है? शास्त्रकारोंने तो ऐसे कौतुक करनेवालों को जिनाज्ञा का विराधक बतलाया हैं। देखो ! “निशीथसूत्र' जिसमें चातुर्मासिक प्रायश्चित बतलाया है।
फिर भी हम खरतरों को पूछते हैं कि इस बात के लिए आप के पास क्या प्रमाण है कि जिनदत्तसूरिने अमावस की पूनम कर दिखाई थी? खरतरों के बनाए