________________
२०६
~
~
~
~
~
~
~
~
~
~
~
~
आपके आचार्यों की भक्ति पूजा करते ही थे और आज भी कर रहे हैं। इसमें तो आपकी अधिकता हैं ही नहीं। जब अन्य गच्छवालें आपके पूर्वजों प्रति पूज्यभाव रक्ख सेवा पूजा करते थे आज उन्हीं के मुँह से आप अपने आचार्यों के अपमान के शब्द सुन रहे हो। इसमें निमित्त कारण तो आप ही हैं न? ।
यदि आप अपना पतित आचार को छीपाने के लिये ही शान्त समाज में राग द्वेष फैला रहे हो तो आप का यह खयाल बिलकुल गलत हैं कारण अब जनता
और विशेष खरतर लोग इतने अज्ञात नहीं रहे हैं कि आप इस प्रकार फूट कुसम्प फैला कर अपने पतित आचार की रक्षा कर सको। यह बात आपकी जानकारी के बहार तो नहीं होगा कि कई लोग खरतर होते हुए भी आप लोगों का मुंह देखने में भी महान् पाप समझते हैं।
मेरे खयाल से तो आप इस प्रकार अन्यगच्छीय आचार्यों की व्यर्थ निंदा कर अपना और अपने भक्तों का अहित ही कर रहे है, यदि अन्य गच्छवालों ने आपका बहिष्कार कर दिया तो आपके चंद ग्रामों में मूठीभर ही भक्त रह जायेंगे।
खरतरो ! अब भी समय है, आप अपनी द्वेष भावना को प्रेम में प्रणित कर दो, सब गच्छवालों के साथ मिल झूलकर रहो । प्रत्येक गच्छ में प्रभाविक आचार्य हुए हैं, उन सबके प्रति पूज्यभाव रक्खों। तुम अन्यगच्छीय आचार्यों के लिये पूज्यभाव रखोंगे तो आपके आचार्यों प्रति अन्य गच्छवाले भी पूज्यभाव रक्खेंगे। अतएव मूर्तिपूजक समाज में प्रेम, ऐक्यता और संगठन बढाओं, इसमें सब के साथ साथ शासन का हित रहा हुआ हैं।
- लेखक