Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 210
________________ २१० श्रीदुर्लभनी सभाई कूर्चपुरागच्छीय चैत्यवासी साथी कास्यपात्रनी चर्चा कीधी, त्यां श्रीदशवैकालिकनी चर्चा गाथा कहीने चैत्यवासीने जीत्या तिवारइं राजा श्रीदुर्लभ कहइ "ऐ आचार्य शास्त्रानुसारे खरं बोल्या." ते थकी वि. सं. १०८० वर्षे श्री जिनेश्वरसूरि खरतर बिरुद लीधो। तेहना शिष्य जिनचंद्र-लघु गुरुभाई अभयदेव सूरि हुआ। तत्पाटे श्रीजिनवल्लभसूरि हुआ। तिणे चित्रकूट पर्वती आवी श्रीमहावीर नओ छटो कल्याणक प्ररुप्यो इत्यादि।" उपर्युक्त लेख का सारांश निम्न लिखित हैं : १. वर्धमानसूरि का स्वर्गवास पाटण में हुआ। बाद जिनेश्वरसूरिने चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ किया। २. शास्त्रार्थ जिनेश्वरसूरि और कूर्चपुरागच्छीय चैत्यवासियों के आपस में हुआ था। ३. राजा दुर्लभने कहा था “ए आचार्य शास्त्राऽनुसार खरं बोल्या" इस शब्द को ही जिनेश्वरसूरिने खरतर बिरुद मान लिया। ४. शास्त्रार्थ का विषय था कांस्य (कांसी) पात्र का। ५. जिनवल्लभसूरिने चित्तौड़ के किले में भगवान महावीर का छट्ठा कल्याणक की प्ररुपणा की। समीक्षा :(विद्वानों को इन खरतरों के प्रमाण पर जरा ध्यान देना चाहिये) (१) पाटण के इतिहास से यह निश्चय हो चुका है कि पाटण में दुर्लभ राजा का राज वि. सं. १०७८ तक था। अर्थात् १०७८ में दुर्लभ राजा का देहान्त हो चुका था। तब वर्धमानसूरिने वि. सं. १०८८ में आबू के मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाइ थी। बाद वे किस समय परलोकवासी हुए और उनके बाद कब जिनेश्वरसूरि ने चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ किया होगा? क्योंकि वर्धमानसूरिने जब आबू के मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवाई थी तब तो दुर्लभ राजा का देहान्त हुए को दश वर्ष हो चुके थे, तो क्या शास्त्रार्थ के समय फिर दुर्लभ राजा भूत होके दश वर्षों से वापिस आया था? जो कि उनके अधिनायकत्व में जिनेश्वरसूरिने शास्त्रार्थ कर खरतर बिरुद प्राप्त किया। जरा इस बात को पहले सोचना चाहिये। ___ (२) शास्त्रार्थ कूर्चपुरा गच्छवालों के साथ हुआ तब यति रामलालजी आदि खरतरों का यह कहना तो बिलकुल मिथ्या ही है न? कि खरा रहा सो खरतरा और हारा सो कवला । कारण कूर्चपुरागच्छ को कोई कवला नहीं कहते हैं। कवला तो उपकेशगच्छवालों को ही कहते हैं। शास्त्रार्थ बताना कूर्चपुरागच्छ के साथ और

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