Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 213
________________ २१३ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwar हो तो इसमें विवाद को स्थान नहीं मिलता हैं और उनकी कीमत भी कृपाचन्द्रसूरि आदि से अधिक नहीं हो सकती हैं। दूसरा गुण युगप्रधान के लिये युगप्रधान के गुण होना चाहिए वे जिनदत्तसूरि में नहीं थे, क्योंकि (१) युगप्रधान उत्सूत्र की प्ररुपणा नहीं करते हैं किन्तु जिनदत्तसूरिने पाटण नगर में यह प्ररुपणा की थी कि स्त्री जिनपूजा नहीं कर सके। इस से जिनदत्तसूरि को अर्द्ध ढूंढिया कहा जा सकता हैं, क्योंकि ढूंढियोंने पुरुष और स्त्रियें दोनों को जिनपूजा का निषेध किया हैं और जिनदत्तसूरिने एक स्त्रियों को ही प्रभुपूजा का निषेध किया। किन्तु शास्त्रों में विधान है कि द्रौपदी, मृगावती, जयन्ति, प्रभावती, चेलना आदि स्त्रियोंने प्रभुपूजा की हैं और इस शास्त्राज्ञा को जिनदत्तसूरि के गुरु तक भी मानते आए थे। केवल जिनदत्तसूरिने ही "स्त्री जिनपूजा न करे" ऐसा कह कर जिनाज्ञा का भंग किया। अर्थात् उत्सूत्र की प्ररुपणा की। क्या ऐसे जिनाज्ञाभञ्जक को ही युगप्रधान कहते हैं ? (२) युगप्रधान उत्सूत्र प्ररुपकों का पक्ष नहीं करते हैं तब जिनदत्तसूरिने छ कल्याणक प्ररुपक जिनवल्लभसूरि का पक्ष कर खुदने भी भगवान् महावीर के छ: कल्याणक की प्ररुपणा कर कई भद्रिक जैन लोगों को सन्मार्ग से पतित बनाया। क्या ऐसे उत्सूत्र प्ररुपक भी युगप्रधान हो सकते हैं ? (३) युगप्रधान किसी को शाप नहीं देते हैं तब जिनदत्तसूरिने पाटण के अंबड श्रावक को शाप दिया कि जा ! तूं निर्धन एवं दुःखी होगा। (देखो दादाजी की पूजा में) (४) युगप्रधान की आज्ञा सकल संघ शिरोधार्य करते हैं तब चन्द व्यक्तियों के सिवाय जैन संघ जिनदत्तसूरि को उत्सूत्रप्ररुपक मानते थे। (५) युगप्रधान आचार्यपद के लिये झगड़ा नहीं करते है किन्तु जिनवल्लभसूरि का देहान्त के बाद जिनदत्तसूरि और जिनशेखरसूरिने आचार्य पदवी के लिए झगड़ा किया। जिनदत्तसूरि कहते थे कि मैं आचार्य होऊँगा और जिनशेखरसूरि कहते थे कि मैं आचार्य बनूंगा। आखिर दोनों आचार्य बन गए। क्या युगप्रधान ऐसे ही होते हैं ? सकल संघ तो दूर रहा पर एक गुरु की संतान में भी इतना झगड़ा होवे और ऐसे झगड़ालुओं को युगप्रधान कहना क्या हमारे खरतरों का अन्तरात्मा स्वीकार कर लेगा? (६) यदि "महाजनवंश मुक्तावली" पुस्तक के कथन को खरतर लोग सत्य मानते हो तो जिनदत्तसूरिने कई स्थान पर गृहस्थों के करने योग्य कार्य किये है। क्या जैन शासन में ऐसे व्यक्तियों को युगप्रधान माना जा सकता है?

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