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बाफनों से निकली हुई नाहटा, जांगड़ा, वैतालादि ५२ जातिएँ भी उपकेशगच्छ के ही श्रावक हैं। फिर जिनदत्तसूरि के ऊपर यह बोझ क्यों लादा जाता है? यदि कभी जिनदत्तसूरि आकर खरतरों को पूछे कि मैंने कब बाफना जाति बनाई थी? तो खरतरों के पास क्या कोई उत्तर देने को प्रमाण है ? (नहीं)
जैसे चोरड़ियों के लिये जोधपुर की अदालत में इन्साफ हुआ है वैसे ही बाफनों के लिए जैसलमेर की अदालत में न्याय हुआ था। वि. सं. १८९१ में जैसलमेर के पटवों (बाफनों) ने श्रीशत्रुजय का संघ निकालने का निश्चय किया उस समय खरतर गच्छाचार्य महेन्द्रसूरि वहां विद्यमान थे। इस बात का पता बीकानेर में विराजमान उपकेशगच्छाचार्य कक्कसूरि को मिला। उन्होंने बाफनों की वंशावलियों की बहियों देकर ११ विद्वान साधुओं को जैसलमेर भेजा और वे वहां पहुंचे। संघ रवाना होने के समय वासक्षेप देने में तकरार हो गई, क्योंकि खरतराचार्यने कहा कि बाफना हमारे गच्छ के हैं, वासक्षेप हम देंगे और उपकेशगच्छवालोंने कहा कि बाफना हमारे गच्छ के श्रावक हैं अतः वासक्षेप हम लोग देंगे। झगड़ा यहां तक बढ़ गया कि दोनों गच्छवाले जैसलमेर के महाराज गजसिंहजी के दरबार तक पहुंच गए। रावल गजसिंहजीने दोनों को साबूती पूछी तो उपकेशगच्छवालोंने तो अपने प्रमाण की बहियों दरबार के सामने रख दी, पर खरतरों के पास तो केवल जबानी जमा खर्च के और कुछ था ही नहीं। वे क्या सबूत देते? महाराज गजसिंहजीने इन्साफ किया कि उपकेशगच्छ वाले कुलगुरु हैं
और खरतरगच्छवाले क्रियागुरु है। वासक्षेप देने का अधिकार उपकेशगच्छवालों को है क्योंकि बाफनों के मूल प्रतिबोधक आचार्य रत्नप्रभसूरि उपकेशगच्छ के ही हैं। बस ! फिर क्या था? खरतरे तो मुंह ताकते दूर खड़े रहे और संघ प्रस्थान का वासक्षेप उपकेशगच्छीय यतिवर्योने दिया। संघ वहां से यात्रार्थ रवाना हुआ। इस विषय का उल्लेख विस्तार से बीकानेर की बहियों में है।
शेष जातियों के लिए इतना समय तथा स्थान नहीं है कि मैं सबके लिए विस्तार से लिख सकूँ। तथापि संक्षेप में इतना अवश्य कह देता हूँ कि जिनदत्तसूरि के जीवन में जिन जातियों का नामोल्लेख किया है उनमें एक भी जाति ऐसी नहीं है कि जो जिनदत्तसूरिने बनाई हो, क्योंकि नाहटा, राखेचा, बहुफूणा, दफ्तरी, चोपड़ा, छाजेड़, संचेती, पारख, गुलेच्छा, बलाह, पटवा, दुघड़, लुणावत, नाचरिया, कांकरिया
और श्रीश्रीमाल आदि जातियाँ उपकेशगच्छाचार्य प्रतिबोधित हैं। बोथरा, बच्छावत, मुकीम धाड़िवाल, फोफलिया, शेखावत आदि जातियें कोरंटगच्छाचार्य प्रतिबोधित हैं। कोठारी, दुधेड़िया जातिएं वायट गच्छाचार्योंने बनाई हैं। कटारीयां वड़ेरा