Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 216
________________ २१६ उदाहरण मैं यहां दे देता हूं कि जिन जातियों को जिनदत्तसूरि से प्रतिबोधित लिखी हैं। वे जातियें इतनी प्राचीन हैं कि उस समय वे दादाजी तो क्या पर इन दादाजी की सातवीं पीढी का भी पता नहीं था। अर्थात् वे जातिएँ दादाजी के जन्म के १५०० वर्षों पूर्व भी मौजूद थी। जैसा कि खरतरोंने चोरड़िया जाति के लिये लिखा है कि (१) चंदरी के राजा खरहत्थ को जिनदत्तसूरिने प्रतिबोध कर जैन बनाया और चौरों के साथ भिड़ने से उसकी जाति चोरड़िया हुई इत्यादि लिखा है। अब देखना यह है कि चोरडिया जाति शुरु से स्वतंत्र जाति है या किसी प्राचीन गोत्र की शाखा हैं ? यदि किसी प्राचीन गोत्र की शाखा है तो यह मानना पड़ेगा कि पहले गोत्र हुआ और बाद में उसकी शाखा हुई। इसके लिए यों तो हमारे पासे इस विषय के बहुत प्रमाण हैं, जो चोरडिया, बाफना, संचेती, रांका और बोत्थरों की किताब में विस्तार से लिखूगा। पर यहां केवल दो शिलालेख और एक सरकारी परवाना की नकल दे देता हूँ जो कि निम्न लिखित हैं : ___ "सं. १५२४ वर्षे मार्गशीर्ष सुद १० शुक्रे उपकेशज्ञातौ आदित्यनाग गोत्रे सा. गुणधर पुत्र सा. डालण भा. कर्पुरी पुत्र स. क्षेत्रपाल भा. जिणदेबाई पुत्र सा. सोहिलन भातृ पासदत्त देवदत्त भा. नामयुत्तेन पुण्यार्थ श्री चन्द्रप्रभ चतुर्विंशति पट्ट कारितः प्रतिष्ठा श्री उपकेशगच्छे कुकुदाचार्य सन्ताने श्री कक्कसूरिः श्रीभद्रनगरे" बाबू पूर्णचंद्रजी नाहर सं. शि. प्र., पृष्ठ १३, लेखांक ५० "सं. १५६२ व. वै. सु. १० खौ उपकेशज्ञातौ श्रीआदित्यनाग गोत्रे चोरड़िया शाखायां सा. डालण पुत्र रत्नपालेन स. श्रीपत व. धघुमलयुतेन मातृ पितृ श्रे. श्रीसंभवनाथ बिं. का. प्र. उपकेशगच्छे ककुदाचार्य (सं.) श्रीदेवगुप्तसूरिभिः" । बाबू पूर्ण. सं. शि. प्र., पृष्ठ ११७, लेखांक ४९७ ऊपर दिये हुए शिलालेखों में पहले शिलालेख में आदित्यनाग गोत्र है और दूसरे में आदित्यनाग गोत्र की शाखा चोरडिया लिखी है इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि चोरड़िया जाति का मूल गोत्र आदित्यनाग है और उसके स्थापक आचार्य रत्नप्रभसूरि है। गोलेच्छा, पारख, गदइया, सावसुखा, नाबरिया, बुचा वगैरह ८४ जातिएँ उस आदित्यनाग गोत्र की शाखएँ हैं। खरतरगच्छीय यति रामलालजीने अपनी "महाजनवंश मुक्तावली" नामक पुस्तक के पृष्ठ १० पर आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा स्थापित 'अठारह गोत्र में १. खरतर यति रामलालजीने अपनी "महाजनवंश मुक्तावली" किताब के पृष्ठ १० पर आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा स्थापित महाजनवंश के अठारह गौत्रों के नाम इस प्रकार

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