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१४. राखेचाओं के पूर्वजों का कुष्ट रोग मिटाया।
पृष्ठ ४२ १५. लुनिया के पूर्वजों के सर्प का विष उतारा।
पृष्ठ ४३ १६. डीसी के पूर्वजों को धन बताया।
पृष्ठ ४४ १७. सुरांणा के पूर्वजों के जगदेव पैवार की कथा।
पृष्ठ ४५ १८. बोत्थरा के पूर्वजों के गप्पों का खजानही।
पृष्ठ ५९ १९. गेलडाओं के पूर्वजों को वास चूर्ण से कजावा की ५००० ईंटों । २०. वुरडी के पूर्वजों को शिव के प्रत्यक्ष दर्शन कराये। पृष्ठ ६५ २१. लोढाओं के पूर्वजो के इनकी अजीब घटना वत । पृष्ठ ६४ २२. संधियों के पूवजों के सर्प का विष उतारा।
पृष्ठ ६९ २३. डागाओं के पूर्वजों के बादशाह का पलंग भंगाया। पृष्ठ ७० २४. ढवाओं के पूर्वजों के बिना सिर पैर की गाय ।
पृष्ठ ७२ २५. कांकरियों के पूर्वजों को दो कांकरों से फौज हटाई म.।। पृष्ठ ७८ २६. श्री मीमाल के पूर्वजों के मलेच्छो से हिन्दूधर्म की निंदा। पृष्ठ ६० २७. छाजेड़ों के पूर्वजों को वास चूर्ण से सोना का छाजा । पृष्ठ ६८ २८. नाहारों के पूर्वजों की कल्पित घटना उतारा।
पृष्ठ ६६ वाह ! वाह ! खरतरों तुम्हारे युगप्रधानों के सिवाय जैन धर्म में इस प्रकार यंत्र मंत्र झाडा झपटादि और कौन कर सकता है ? यदि यह सब बातें सच्ची हैं तो हमारा उपरोक्त लेख इन बातों से और भी पुष्ट प्रमाणिक सिद्ध होता है कि जिनदत्तसूरि ने जैन समाज को यंत्र मंत्र बताकर सत्य धर्म से पतित बनाकर चन्द व्यक्तियों को अपने भक्त जरुर बनाये है। यही कारण है कि उपरोक्त जातियों के कई कई लोग आज भी खरतरों को मानते हैं। पर उक्त जातियां जिनदत्तसूरि के जन्म से पूर्व सैकड़ों वर्षों से बनी हुई थी। इस विषय में विशेष जानने वालों को 'जैन जाति निर्णय प्रथमांक या खरतरों का गप्प पुराण' मंगाकर पढ़ना चाहिए कि सत्य का साक्षात्कार हो सकेगा।
श्री उत्तराध्ययन एवं दशवैकालिकसूत्र में इस प्रकार के कार्य करने वालों को भ्रष्टाचारी कहा है और निशीथ सूत्र में उपरोक्त कार्य करने वालों को दंडित एवं प्रायश्चित भी बतलाया है। अतः ऐसे भ्रष्टाचारी एवं दंडितों को भी चमत्कारी कहा जाता हो तो यह खरतरों को ही मुबारिक है।
प्रश्न – रत्नप्रभसूरि के लिये भी राजा के जमाई को सांप ने काटा, जिसका विष उतारा आप भी तो कहते हैं न?