Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 203
________________ २०३ प्रस्तुत पत्र एक बार नहीं पर तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ लिया है। जिस मजमून को आपने लिखा है उसको पढ़ कर मुझे किसी प्रकार का आश्चर्य नहीं हुआ है क्योंकि यह सब आप लोगों की चिरकालीन परम्परा के अनुसार ही लिखा हुआ है। पत्र में ११ कलमों के अन्त में आपने लिखा है कि "तुम नागोर आओ, तुम्हारा बुढ़ापा यहीं सुधारा जायेगा" इत्यादि। पर मेरा बदनसीब हैं कि आपका आग्रहपूर्वक आमंत्रण होने पर भी मैं नागोर नहीं आ सका। इसका खास कारण यह था कि आपका पत्र मिलने के पूर्व ही मैंने सोजत श्रीसंघ की अत्याग्रहपूर्वक विनति होने से वहां चातुर्मास करने की स्वीकृति दे दी थी। अन्यथा मेरा बुढ़ापा सुधारने को अवश्य आप की सेवा में उपस्थित हो जाता। ___ मेरा बुढापा सुधारने का सौभाग्य तो शायद आप के नसीब में नहीं लिखा होगा, तथापि आप की इस शुभ भावना के लिये तो मैं आप का महान उपकार ही समझता हूं। खैर ! आपकी शुभ भावना यदि किसी का सुधार-कल्याण करने की ही है तो मेरी निस्वत आप के पूर्वजों के जन्म कई प्रकार से बिगड़े हुए पुराने पोथों में पडे हैं उन्हें सुधार कर कृतकृत्य बनें । शायद आप की स्मृति में न हो तो उसके लिए यह छोटासा लेख मैं आज आप की सेवा में भेज रहा हूँ। यदि आप की दीर्घ भावना इतना सा छोटे लेख से तृप्त न हो तो फिर कभी समय पाकर विस्तृत लेख लिख आपको संतुष्ट कर दूंगा। उम्मीद है कि अभी तो आप इतने से ही संतोष कर लेंगे। सोजत सिटी (मारवाड) - आपका कृपाकांक्षी ता. १-१०-३७ ज्ञानसुन्दर नोट-इस पत्र की भाषा इतनी अश्लील है कि सभ्य मनुष्य लिख तो क्या सके पर पढ़ने में भी धृणा करते हैं। पत्र के लिखनेवालों की योग्यता, कुलीनता और द्वेषाग्नि का परिचय स्वयं यह पत्र ही करा रहा हैं, सिवाय नीच मनुष्य के पूर्वाचार्यों पर मिथ्या कलंक कौन लगा सकता है? खैर ! मिथ्या आक्षेपों का निवारण मिथ्या आक्षेपों से नहीं पर सत्य से ही हो सकता हैं, जिस का दिग्दर्शन इस किताब में करवाया गया है, जरा ध्यान लगा कर पढ़ें।

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