Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 202
________________ २०२ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww 88888888888888 हृदयोद्गार 88888888888888 खरतरों ! तुम मेरे लिये भले बुरे कुछ भी कहो, मैं उपेक्षा ही करुंगा। पर पूर्वाचार्यों के लिये तुम लोग हलके एवं नीच शब्द कहते हो उनको मैं तो क्या पर कोई भी सभ्य मनुष्य सहन नहीं करेंगे, जैसे तुम लोगोंने कहा है कि: "तुम्हारा रत्नप्रभसूरि किस गटर में छीप गया था ?" "रत्नप्रभसूरि हुए ही नहीं हैं। ओसियाँ में रत्नप्रभसूरिने ओसवाल बनाये भी नहीं है। ओसवाल तो खरतराचार्योंने ही बनाये हैं।" इत्यादि। खरतरों के अन्याय के सामने मैंने पन्द्रह वर्ष तक धैर्य रक्खा पर आखिर खरतरोंने मेरे धैर्य को जबरन् तोड़ डाला जिसकी यह "पहली अवाज है" "अरे खरतरों ! रत्नप्रभसूरि मेरा नहीं पर वे जगत्पूज्य हैं। तुम्हारे जैसी कोई व्यक्ति कह भी दें इससे क्या होने का हैं ?" मुझे ऐसी किताब लिखने की आवश्यकता नहीं थी पर यह तुम्हारी ही प्रेरणा हैं कि मुझे लाचार होकर ऐसे कार्य में हाथ डालना पड़ा हैं। आचार्य रत्नप्रभसूरिने ओसवाल बनाया जिस के लिये तो आज अनेक प्रमाणिक प्रमाण उपलब्ध हैं पर क्या तुम भी तुम्हारे पूर्वजों के लिये एकाध प्रमाण बतला सकते हो?" पत्र की पहुच नागोर में विराजमान प्रिय खरतरगच्छीय महात्मन् ! सादर सेवा में निवेदन है कि आपका भेजा हुआ पत्र मिला है। यद्यपि पत्र गुमनाम का है पर उसके हरफ देखने से व मजमून पढ़ने से यह सिद्ध हुआ है कि यह पत्र आपका ही भेजा हुआ हैं। पत्र एक आने के लिफाफे में है, लाल स्याही से कागद के दोनों ओर लिखा हुआ है। वह पत्र नागोर की पोष्ट से ता. ६-६-३७ को रवाना हुआ है। ता. ७६-३७ को पीपाड की पोष्ट से डिलेवरी हुई हैं। ता. ८-६-३७ को मुकाम तीर्थ कापरडा में मुझे मिला है। यह सब हाल लिफाफा पर लगी हुई पोष्ट ऑफिस की छापों से विदित हुआ है।

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