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प्रमाण हैं जिसके लिये देखो खरतरगच्छोत्पत्ति भाग पहला-दूसरा ।
जब जिनेश्वरसूरि और चैत्यवासियों के साथ शास्त्रार्थ हुआ ही नहीं है तो ऐसे कल्पित चित्रों की क्या कीमत हो सकती है?
३. जिनचन्द्रसूरि और मुल्ला को टोपी का भी एक कल्पित चित्र खरतरों ने बनाया है वह भी मिथ्या ही है। कारण, न तो जिनचन्द्र ने मुल्ला की टोपी उडाई थी और न उसने बकरी के भेद ही बतलाये थे। फिर ऐसे झूठे चित्रों की क्या फूटी कोड़ी जितनी भी कीमत हो सकती है। यदि थोड़ी देर के लिए यह बात मान भी लें तो इसमें जिनचन्द्र का क्या महत्व बढ़ा? क्योंकि यह काम तो बाजीगरों का है। जैन शास्त्रों में तो ऐसे कोतूहल करने वाले को आचार से भ्रष्ट और दंडित बतलाया है। खरतरों की अक्ल क्यों मारी गई है कि अपने आचार्यों को आचारभ्रष्ट और दण्डित बनाने की कोशिश करते हैं?
४. जिनचन्द्र नदी में खड़ा रह कर पांच पीरों की आराधना कर रहा है। इसका चित्र बनाया है। यह भी कल्पित ही है, न तो जिनचन्द्र ने पीरों को साधा है और न पीर आये ही थे।
५. जिनदत्तसूरि और बिजली का झूठा चित्र बनाया है। इसके विषय में इसी किताब में ठीक खुलासा कर दिया है।
इस प्रकार खरतरों ने कल्पना चित्र बनाना शुरु किया है, पर आज तो बीसवीं शताब्दी है। इस चित्र नायकों की इन्द्रजालियों से अधिक कीमत नहीं है। अतः जनता सावधान रहे, ऐसे धोकेबाजियों के जाल में फंस कर अपना अहित न कर डाले।
खरतरों की बातें
समाप्तम्