Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 199
________________ १९९ कहते हैं। इतने दिन तो खरतर लोग अपने आचार्यों की झूठी झूठी प्रशंसा पुस्तक में ही लिखते थे पर अब उन कल्पित बातों को चित्रों द्वारा प्रसिद्ध कर उनका प्रचार करने का मिथ्या प्रयत्न कर रहे हैं। पर क्या हजार मण साबुन से गधा को धो डालने पर भी वह घोड़ा बन सकता है? इसी प्रकार कितना ही जाल एवं प्रपंच रचें पर खरतरों पर जो उत्सूत्र रुपी कलंक लगा हुआ है वह कभी हटने का नहीं लो वह हुई जिनचंद्रसूरि की बातें। आगे कुछ और बातें सुनाइये? बातें तो बहुत हैं पर समय बहुत हो गया है। आज तो में जाता हूँ समय मिला तो कभी गणि क्षमाकल्याण और सुखसागर की बातें सुनानी हैं, खैर जो मैंने आपको बातें सुनाई हैं वह सब मूल पाठ की ही है इस पर टीका भाष्य चूर्णि और नियुक्ति सुनानी तो शेष रह ही गई है और वह है भी महत्व की, यदि कोशिश होगी तो समय पाकर वह भी सुना दूंगा, ठीक अभी तो चलिये। कल्पित मत के कल्पित चित्र । यह बात तो स्पष्ट प्रमाणों द्वारा सिद्ध हो चुकी है कि खरतर मत एक कल्पित मत है। उत्सूत्र प्ररुपणा से इस मत की नींव डाली गई थी और उत्सूत्र से ही यह जीवित रहा है। पर अब इस मत की जहां तहां पोल खुलनी शुरु हो गई है। अतः जैसे देवालिया मनुष्य ज्यों त्यों कर अपनी इज्जत रखना चाहता है वैसे ही खरतर लोगों ने अपनी इज्जत रखने को काल्पनिक चित्र बना कर बिचारे थली जैसे भद्रिक लोगों को अपने जाल में फंसा रखने का प्रयत्न करना शुरु किया है, पर दिवालिया दिवाले से कहां तक बच सकता है ? आखिर तो दिवाला निकल ही जाता है। यह हाल खरतरों का है। १. जिनेश्वरसूरि चैत्यवासियों के शास्त्रार्थ का एक कल्पित चित्र हाल में खरतरों ने बनाया है पर वह बिल्कुल मिथ्या है। कारण खरतरों के ही भाई रुद्रपालीगच्छ के संघतिलकसूरि अपने दर्शन सप्ततिका ग्रन्थ में स्पष्ट लिखते हैं कि जिनेश्वरसूरि पाटण गये थे पर वे राजसभा में नहीं गये थे फिर चैत्यवासियों के साथ उनका शास्त्रार्थ कैसे हुआ और राजा दुर्लभ ने उनको खरतर बिरुद कैसे दिया? २. प्रभाचन्द्रसूरि ने प्रभाविकचरित्र में अभयदेवसूरि का प्रबन्ध लिखा है, जिसमें भी यही लिखा है कि जिनेश्वरसूरि पाटण गये पर न तो वे राजसभा में गये न शास्त्रार्थ हुआ और न खरतर बिरुद ही मिला। इस विषय के और भी अनेक

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