Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 185
________________ १८५ विद्वत्ता पूर्वक बादशाह को उपदेश देते हुये कहा कि ईश्वर, आत्मा, कर्म और सृष्टि अनादी हैं, सुकृत के शुभ और कुकृत्य के अशुभ फल जन्म जन्मान्तर में अवश्य भुगतना पड़ता है, इसके अलावा जैन साधुओं का आचार, विचार, दया, क्षमा, शील, सन्तोष और निस्पृहता के विषय में इस कदर से कहा कि जिसका बादशाह की आत्मा पर काफी प्रभाव हुआ। बादशाह ने जन्म भर में ऐसा उपदेश नहीं सुना था। पर आज एक दिन के उपदेश से जैन श्रमणों के लिये बादशाह के हृदय में एक खास स्थान बन गया। बादशाह ने समझा कि मैंने जैसे सेठानी चम्पाबहन से सुना था वैसा ही नहीं पर उससे भी अधिक कई गुना आपके अन्दर अलौकिक गुणों का अनुभव किया है। बादशाह अकबर सूरीश्वरजी का उपदेश सुनकर बहुत प्रसन्न चित्त हुआ और सूरिजी की मुक्त कंठ से भूरि भूरि प्रशंसा करते हुये प्रार्थना की कि पूज्यवर ! आप आगरे पधारकर चातुर्मास करावे और हमारे जैसे अज्ञ प्राणियों को उपदेश सुनाकर हमारा उद्धार करने की कृपा करें। इसी प्रकार आगरे के अग्रेसरों ने भी विनती की कि पूज्यवर ! आपके पधारने से बड़ा भारी लाभ और जैन शासन का उद्योत होगा। अतः आप जरुर आगरे पधारकर चातुर्मास करावें । सूरिजी ने बादशाह एवं आगरे के अग्रेसरों से कहा कि जैसी क्षेत्र स्पर्शना । सूरीश्वरजी फतेहपुर से चलकर आगरे पधारे। बादशाह ने अपने शाही लवाजमे से सूरिजी का बड़ा भारी सत्कार किया। संघ में भी सर्वत्र आनन्द छा रहा था। क्यों नहीं? ऐसे प्रभावशाली सूरीश्वर का पधारना और एक मुगल बादशाह पर उनका इस प्रकार जबरदस्त प्रभाव पड़ना। एक आगरे के संघ ही को क्यों पर सकल जैन समाज को इस बात का बड़ा ही गौरव एवं खुशी प्रगट हुई थी। वि. सं. १६३९ का चातुर्मास सूरीश्वरजी का आगरे में हुआ। बादशाह अकबर सूरीश्वरजी के उपदेश रुपी अमृत को पान कर जैन धर्म का खूब ही अनुरागी बन गया था। दया भगवती ने तो बादशाह के हृदय में खास स्थान ही बना लिया था, क्योंकि सूरिजी का व्याख्यान विशेषतया अहिंसा विषय पर ही होता था। जब पर्वाधिराज श्रीपर्युषण पर्व का शुभागमन हुआ तो सूरिजी ने बादशाह को उपदेश दिया कि पर्युषणों के आठ दिन बड़े ही महत्व एवं धर्म साधन करने के होते हैं। अतः इन आठ दिनों में किसी प्रकार के जीवों की हिंसा न होनी चाहिये । बस फिर तो देरी ही किस बात की थी? कारण, बादशाह जान गया था जैन साधु निज के लिये न तो कुछ मांगते हैं और न कुछ देने पर लेते ही हैं। अतः बादशाह ने खूब प्रसन्न हो आठ दिन सूरिजी के उपदेश के और सूरिजी के

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