________________
१८४
सूबेदार के आदमी और संघ के अग्रेसर लोग फरमान लेकर गन्धार बंदर सूरिजी की सेवा में पहुंचे, उधर से खम्भात के संघ अग्रेसरों को बुलाये, वे भी गन्धार आ पहुंचे थे। बादशाह का फरमान देकर आगरे पधारने की प्रार्थना की। इस पर सूरिजी ने उपस्थित श्रीसंघ की सम्मति ली। इस पर आपस में तर्क वितर्क के अन्त में यह निश्चय हुआ कि बादशाह आमंत्रण पूर्वक बुलाता है तो सूरिजी को अवश्य जाना चाहिये। एक यवन बादशाह को उपदेश देने से बहुत जीवों का उपकार होगा और जैनधर्म की प्रभावना भी होगी। सूरीश्वरजी का तपतेज और प्रभाव बड़ा ही जबर है। बादशाह पर अवश्य प्रभाव पड़ेगा।
वि. सं. १६३९ मागसर सुद ५ को गन्धार से सूरिजी विहार कर क्रमशः अहमदाबाद पधार रहे थे। अहमदाबाद के सूबेदार एवं श्रीसंघ ने आपका शानदार स्वागत किया, तत्पश्चात् वहाँ के सूबेदार ने आगरे पधारने की प्रार्थना की और कहा कि रास्ते में किसी प्रकार की आवश्यकता हो फरमाइये, मैं सब इन्तजाम कर दूंगा। सूरिजी ने कहा हम पैदल चलने वालों के लिये किसी प्रकार के इन्तजाम की आवश्यकता नहीं है। बादशाह एवं आपकी भक्ति प्रशंसनीय है। क्षेत्र स्पर्शना होगा तो हमारा इरादा आगरे जाने का है।
तत्पश्चात् सूरिजी ने अहमदाबाद के श्रीसंघ की सम्मति ली। श्रीसंघ ने बड़ी खुशी के साथ सम्मति दे दी। अतः सूरिजी क्रमशः विहार करते हुये पाटण पधारे । वहां कई धर्मकार्य होने से कुछ दिन के लिये सूरिजी ठहर गये पर अपने विद्वान शिष्य उपाध्याय हर्षविमलादि ३५ साधुओं को आगरे की ओर विहार करवा दिया और वह क्रमशः फतेहपुर के नजदीक पधार रहे थे।
बादशाह हर समय सूरिजी के समाचार मंगाया करता था, जब बादशाह को खबर मिली कि सूरिजी के साधु फतेहपुर पधारने वाले हैं तो बादशाह भक्तिरंग से रंगा हुआ जैन साधुओं के समागम एवं दर्शन के लिये फतेहपुर आया। इतने में सूरिजी के साधु भी पधार गये, जिनका समागम करने से बादशाह को बड़ा ही आनन्द आया था। फिर भी वह सूरिजी की प्रतिक्षा कर रहा था।
आचार्य विजयहीरसूरि अपने शिष्य मंडल के साथ क्रमशः विहार करते हुये १६३९ जेठ शुक्ल १३ को फतेहपुर पहुंच गये, जिसको सुनकर बादशाह ने बहुत ही खुशी मनाई। उस समय आगरादि कई नगरों के संघ अग्रेसर भी सूरिजी के दर्शनार्थ फतेहपुर में आकर हाजिर हुये थे। सूरिजी के स्वागत के लिये तो कहना ही क्या था? बड़ा ही शानदार सम्मेला हुआ जब सूरीश्वर और सम्राट का मिलाप हुआ। वह दृश्य एक अनोखा ही था। तत्पश्चात् सूरीश्वरजी ने मधुर वाणी एवं