________________
१९५
wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwr
"उसने (जिनचन्द्र ने) प्रार्थना की कि इससे पहले विजयहीरसूरि ने सेवा में उपस्थित होने का गौरव प्राप्त किया था और हर साल बारह दिन मांगे थे, जिनमें बादशाह के मुल्क में कोई जीव मारा नहीं जावे और कोई आदमी किसी पक्षी मछली और उनके जैसे जीवों को कष्ट न दे। उसकी प्रार्थना स्वीकार हो गई थी। अब मैं भी आशा रखता हूँ कि एक सप्ताह का और वैसा ही हुक्म इस शुभचिंतक के वास्ते हो जाय।"
"युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि, पृष्ठ २८८" उपरोक्त लेख से पाठक समझ गये होंगे कि जिनचन्द्र ने विजयहीरसूरि का नाम लेकर प्रार्थना की और बादशाह ने भी विजयहीरसूरि के लिहाज से फरमान दिया था, न कि जिनचन्द्रसूरि की योग्यता पर।
दूसरे बादशाह अकबर एक चतुर मुत्सद्दी था, कर्मचन्द वच्छावत को अपना बनाकर अपने पास में रखना था। जिनचन्द्र उसका गुरु था और शुभचिंतक बनकर आशा करने वाले जिनचन्द्र को निराश भी नहीं करना था। अतः बादशाह ने फरमान लिख दिया । इसमें न तो जिनचन्द्र का महत्व था और न खरतरों को फूलना ही चाहिये।
अब जरा ध्यान लगाकर देखना चाहिये कि कहां तो विजयहीरसूरि का तप तेज और प्रभाव और कहां जिनचन्द्रसूरि की योग्यता
१. विजय-हीरसूरि को बादशाह | १. कर्मचंद वच्छावत के कहने से भक्ति पूर्वक आमंत्रण का फरमान | जिनचन्द्रसूरि को फरमान भेजता है पर अहमदाबाद के सूबेदार को भेजता है | जब जिनचंद्र चातुर्मास में विहार करता
और उनके विहार के समाचारों को मंगाता | है तब वापिस मनाई का हुक्म भेजता हुआ दर्शनों की प्रतीक्षा कर रहा है।
२. विजयहीरसूरि के दर्शनों के लिये २. जिनचंद्रसूरि बादशाह के दर्शनों बादशाह आगरे से फतेहपुर आता है। | के लिये उसके पीछे पीछे लाहौर जाता
३. विजयहीरसूरि ने बादशाह को । ३. जिनचंद्र ने बादशाह के पास प्रतिबोध कर जैन धर्म का अनुरागी | अपने घर का रोना रोकर यह बतलाया बनाया तथा जैन साधुओं का आदर्श | कि हम जैन साधु आपस में लड़ते बतला कर जैन धर्म का पक्का भक्त झगड़ते और परस्पर निंदा कर निंदा के बनाया।
ग्रंथ लिखते हैं।