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एक यह भी मिथ्या प्ररुपणा कर डाली कि सामायिक दंडक उच्चारने के बाद इरियावही करना। जो इरियाहवी करके सामायिक दंडक उच्चारने की विधि आगमानुसार परम्परा से चली आ रही थी। पर जिनदत्त के तो प्रबल मिथ्या कर्म का उदय हुआ था। उनको आगम की विधि क्यों सूझे? बंडसूरा के सामने कितने ही पाक पकवान रख दिये जाये तो भी वह तो अपनी रुची वाले पदार्थ पर ही टूट पड़ता है। यही हाल खरतरों का है। भला खरतरों को पूछो कि सामायिक लेने के पूर्व तो इरियावही क्षेत्रशुद्धि व चित्तविशुद्धि के लिये या आते समय जीवों की विराधना वगैरह हुई हो इसके लिये की जाती है वह ठीक कही है, पर सामायिक दंडक उच्चारण करके अशुभ (सावद्य) योगों का पच्चखान कर लिया फिर तत्काल ही इरियावही की जाती है, यह किस पाप की इरियावही है? क्या सामायिक दंडक उच्चारण भी खरतरों में पाप कर्म माना गया है कि जिसकी इरियावही की जाती है। पर इस उल्टे पंथ की सब बातें ही उल्टी हैं। जिनाज्ञा प्रतिपालक श्रावक को तो पहले इरियावही करके ही सामायिक दंडक उच्चरना चाहिये और इस विधि की सामायिक को ही शुद्ध सामायिक कही जाती है।
१८. खरतरों ने दो श्रावण हों तो पर्युषण दूसरा श्रावण में और दो भादरवा हों तो पहले भादरवा में पर्युषण करना मनःकल्पित ठहरा दिया। यदि इन अक्ल के दुश्मनों को पूछा जाय कि दो चैत्र या आश्विन हों तो तुम ओलियों किस चैत्र आश्विन में करते हों । दो अषाढ़ हों तो चतुर्मासिक प्रतिक्रमण किस अषाढ़ में करते हों । उत्तर में यही कहेगा कि ओलिये दूसरा चैत्र, दूसरा आश्विन मास में और चतुर्मासिक अतिक्रमण दूसरे अषाढ़ में करेंगे। क्योंकि इन अधिक मासों में पहला मास लुन मास माना गया है। अतः पूर्वोक्त कार्य दूसरे मास में ही करते हैं इत्यादि। फिर पर्युषण जैसा पर्व दूसरे श्रावण या पहले भादरवा में क्यों किया जाता है और इसका मतलब क्या है ? सिवाय कल्पित परम्परा के और कुछ भी उत्तर नहीं मिलता है।
यदि यह कहा जाय कि अषाढ़ चौमासी से ५० वे दिन पर्युषण करना शास्त्र में लिखा है। पर शास्त्र में यह भी तो लिखा है कि पर्युषण करने के बाद ७० वे दिन कार्तिक चतुर्मासी करके विहार कर देना। फिर दूसरे श्रावण या पहले भादरवा में पर्युषण करने वालों को कार्तिक चौमासी तक १०० दिन हो जाता है। तब शास्त्र की मर्यादा कैसे रह सकती है?
प्रश्न – फिर यह दोनों पाठों का पालन कैसे हो सकता है ? कारण श्रावण या भादरवा दो होने से दूसरा भादरवा में पर्युषण करने से अषाढ़ चौमासी से ८० दिन होते हैं और दूसरा श्रावण या पहला भादरवा में पर्युषण करने से पिछले ७०