Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 154
________________ १५४ पर हरिभद्रसूरिने पंचासक' में तथा अभयदेवसूरि ने उस पर टीका लिखते हुये महावीर के पांच कल्याणक की पांच तिथियां अलग अलग बतलाई २ हैं । उन अभयदेवसूरि के वचनों को झूठे बतलाने वाले जिनवल्लभ को उनके पट्टधर समझना सिवाय खरतरों के कौन समझे ? क्यों कि आखिर तो खरतर खरतर ही हैं न ? खैर खरा खोटा एक मत तो होना चाहिये, पर : २. १. कई लोग जिनवल्लभ को चैत्यवासी जिनचन्द्रसूरि का शिष्य । २. कई लोग कुर्च्चपुरागच्छीय जिनेश्वरसूरि चैत्यवासी का शिष्य । ३. कई कहते हैं कि जिनवल्लभसूरि अभयदेवसूरि के पास पढ़ने को आया १. तेसुअ दिसु धण्णा, देविंदाई करिंति भत्तिणया । जिणजत्तादि विहाणा, कल्लाणं अप्पणो चेव ॥ ३ ॥ इअ ते दिणा पसत्था, ता सेसेहिंपि तेसु कायव्वं । जिणजत्तादि सहरिसंते य इमे वद्धमाणस्स ॥ ४ ॥ आषाढ़ सुद्धिछट्टी, चित्ते तह सुद्धि तेरसी चेव । मग्गसिर कन्हा दसमी, वइसाहि सुद्ध दसमी य ॥ ५ ॥ कतिय कन्हा चरिमा, गब्भाइ दिणा जहक्कमं एते । हत्थुत्तरजोएणं चउरो, तह साइणा चरमो ॥ ६ ॥ अहिगय तित्थविहिया, भगवति निदंसिआ इमे तस्स । सेसाणवि एवं चिअ निअ निअ तित्थेसु विण्णेआ ॥ ७ ॥ श्री हरिभद्रसूरि कृत यात्रा पंचाशक ग्रन्थ (प्र. प., पृ. ३२८ ) “वर्धमानस्य- महावीरजिनस्य भवन्तीति गाथार्थ आषाढ़ गाहा - आषाढ़ शुद्ध षष्ठी - आषाढ़ मास शुक्ल पक्षे षष्ठीतियिरित्येकं दिनं ९ एवं चैत्रमासे तथेति समुच्चये शुद्ध त्रयोदस्येवेति द्वितीयं २ चैवेत्यवधारणे, तथा मार्गशीर्ष कृष्णदशमीति तृतीय ३ वैशाख शुक्ल दशमीति चतुर्थ ४ च शब्द समुच्चयार्थ कार्तिक कृष्णे चरमा पंचदशीति पंचमं ५ एतानि किमित्यह गर्भादिदिनानि ( १ ) गर्भ ( २ ) जन्म (३) निष्क्रमण ( ४ ) ज्ञान ( ५ ) निर्वाण दिवसाः यथाक्रमं क्रमेणैव । अभयदेवसूरि कृत पंचाशक टीका, प्र. प., पृ. ३३० श्रीजिनवल्लभसूरिः चैत्यवासिसुवर्णकच्चोलकवर्षि जिनचंद्रसूरि शिष्यो । ख. प., पृष्ठ १० जिनवल्लभसूरिः च प्रथमं कूर्च्चपुरगच्छीयचैत्यवासिजिनेश्वरसूरिशिष्योऽभूत् । ख. प., पृष्ठ २४ यतो देवग्रहनिवासिशिष्य इति हेतोर्गच्छस्य सम्मतं न भविष्यतीति ततो गच्छधारको वर्धमानाचार्यः स्वपदे निवेशितः जिनवल्लभगणेश्च क्रियोपसंपदं दत्तवन्त इत्यतः प्रभृत्यस्मदाज्ञया सर्वत्र प्रवर्तितव्यमिति एकान्ते पुनः प्रसन्नचन्द्राचार्यो भणितः मदीये पदे भव्यलग्ने जिनवल्लभगणिः स्थापनीय इत्येवं नवांगीवृत्तिं वर्तिनीमिव मुक्तिनगरस्य मध्ये जनेभ्यो प्रतिपाद्य सिद्धान्तोक्तविधिना समाधानेन देवलोकं गतः श्रीअभयदेवसूरयः । प्रश्नचन्द्राचार्यस्यापि सुगुरुपदनिवेशन प्रस्तावो न जातः ततस्ते अपि स्वायुः परिसमाप्तिसमये श्रीदेवभद्राचार्याणां विज्ञप्तयस्सुगुरुपदेशो युष्माभिरेव सफलीकार्योऽवश्यमेव, मया कर्तुं न शक्तिः । ग. सा. श. का. अ. प्रवचन परीक्षा, पृष्ठ २३६

Loading...

Page Navigation
1 ... 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256