Book Title: Khartar Gaccha Ka Itihas
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 166
________________ १६६ फिर भी दादाजी का हृदय इतना संकीर्ण था कि केवल एक खरतरों को ही धोके में उतारा। क्योंकि दूसरे गच्छवाले अगर धनाढ्य हो जाते तो उनसे देखा भी कैसे जा सकता यही कारण था कि चक्रेश्वरी देवी की स्तुति में जिनदत्तसूरि ने अन्य गच्छ वालों के गला काटने का देवी को आर्डर दिया है। भला इस हालत में वे अन्य गच्छियों को धनाढ्य बनाना कब चाहते होंगे? ३. उन सात वरदानों में एक प्रभावशाली यह भी वरदान है कि खरतर संघ में कुमरण नहीं होगा, पर उन वरदान लेने देने वालों ने यह नहीं सोचा कि यदि यह वरदान आगे चल कर सत्य निकला तो साध्वीयों का टोला कैसे बढ़ेगा? कारण आज तो प्रायः बालविधवाओं ने ही कि जिनके पति कुमरण अर्थात् अल्पायुः में ही परलोकवासी हुए दीक्षा ली हैं। खैर वरदान झूठा हुआ तो हर्ज नहीं पर साध्वीयों की तो संख्या इससे ही बढ़ी है। वाह रे खरतरों तुम्हारे वरदान !! ४. कई खरतर अपने दादाजी का प्रभाव बढ़ाने के लिये कहते हैं कि दादाजी ने बावन वीर और चौंसठ योगिनियों को वश में कर ली थीं। भला बावन वीर और चौंसठ योगिनियों को वश में कर दादाजी ने क्या उजाला किया था? क्या उस समय धर्मान्धता के कारण यवन लोग मन्दिर मूर्तियों को तोड़ रहे थे उनको सजा करवा कर मन्दिर मूर्तियों की रक्षा की थी या दादाजी के वीर योगिनियां उन मुगलों से डरते थे कि उनका सामना नहीं किया। शायद जिनदत्त या जिनशेखर के आपस में कट्टर शत्रुता चल रही थी। उस समय जिनदत्त के पक्ष में ६४ औरतें और ५२ पुरुष लड़वाये होंगे। उनको ही पिछले लोगों ने ५२ पुरुषो को वीर और ६४ महिलाओं को योगिनियां लिख दिया है। क्योंकि गणधर सार्द्धशतक ग्रंथ जो खास जिनदत्तसूरि का लिखा हुआ है उस पर टीका भी खरतरों ने लिखी है। उसमें जिनदत्तसूरि के जीवन में तो इन बातों की गन्ध भी नहीं परन्तु पिछले लोगों ने इस प्रकार कल्पना कर दादाजी का महत्व बढ़ाया है। पर यह महत्व होली के बादशाह के सदृश ही है। ५. कई खरतर भक्त कहते हैं कि दादाजी ने बिजली को पात्र के नीचे दबा ली और उससे वचन लिया कि मैं खरतर गच्छ के श्रावक पर कभी नहीं पडूंगी। क्या यह दादाजी का चमत्कार नहीं है? १. संघे कुमरणं न भविष्यति (खरतर पट्टावली, पृष्ठ २५) २. गणधर सार्द्धशतक पर वृत्ति रचने का समय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का है जो जिनदत्तसूरि के निकट का समय था जिसमें तो इन बातों का जिक्र ही नहीं है, तब उन्नीसवीं शताब्दी के खरतरों ने किस आधार से यह कल्पनाएं की हैं ?

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