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यह गप्प लिखने वाला जैन सिद्धान्त से अनभिज्ञ ही था और केवल मनःकल्पना से लिखी है। जिनदत्तसूरि के जीवन में इस बात की गन्ध तक नहीं है। फिर भी भक्तों ने दादाजी की महिमा नहीं, पर हंसी उड़ाई है। कारण, बिजली जहां गिरती है वह भस्मीभूत कर देती है। कारण, गिरती हुई बिजली में अग्नि की सत्ता रहती है। फिर वह दादाजी के पात्र के नीचे कैसे रह सकी? यदि कोई कहे कि दादाजी ने उस बिजली को मन्त्र से मन्त्र दी थी? पर ऐसे उत्सूत्र भाषकों के पास मन्त्र शक्ति आई कहां से? और मन्त्र शक्ति थी तो एक बिजली पर ही आजमाइश क्यों ? किसी बादशाह का चूल्हा जलना बन्द कर देते कि कुछ काम तो निकलता। पर मन्त्र था कहां? दूसरा बिजली से वचन लिया यह भी गप्प ही है। बिजली को शास्त्रों में एकेन्द्रिय कहा है। उसके वचन तो होता ही नहीं। फिर बिजली बोली कैसे? क्या इसमें दादाजी की मन्त्र शक्ति का प्रयोग था? खरों में अक्ल भी खर जितनी होती है। खैर थोड़ी देर के लिये मान भी लें कि बिजली ने वरदान दिया होगा कि खरतरों पर मैं नहीं पडूंगी। पर थोड़े वर्ष पहले खरतर यति कृपाचन्द्रजी मालवा में बिचरते थे। रतलाम के पास एक गांव में वे प्रतिक्रमण कर रहे थे उस समय बिजली गिरी थी। कृपाचन्द्रजी और उनके भक्तों को चोट भी लगी थी, जिसके समाचार उसी समय अखबारों में छप गये थे। यदि बिजली ने वचन दिया था तो वह खरतरों पर कैसे टूट पड़ी? अरे खरतरों जरा मनुष्यत्व का मान रखो। ऐसी गप्पें हांकने में तुम्हारी और तुम्हारे माने हुये आचार्यों की महिमा नहीं पर उल्टी हंसी होती है।
६. दादाजी की पूजा में लिखा है कि दादाजी ने भक्त के डूबते हुये जहाज को तिराया। क्या यह चमत्कार नहीं है? दादाजी किसी भव में नाव चलाने वाले नाविक होंगे और यह बात उनको स्वप्न में याद आ गई होगी या खरतरों ने गप्प मारी होगी। जब वे जीवन में कुछ भी नहीं कर सके तो मरने पर तो कर ही क्या सकते थे? भला दादाजी में डूबती हुई नाव को तिराने की शक्ति होगी तब तो नाव को डुबाने की शक्ति भी होगी। भक्तों की नाव तिराई तो दुश्मनों की नाव डुबाई भी होगी। तब तो आज पर्यन्त जितनी नावें डूबी हैं वह भी दादाजी ने ही डुबाई होंगी। यदि दादाजी जीवित होते तो उन पर दावा कर रकम वसूल करते
और दादाजी कह देते कि मैंने नाव न तराई और न डुबाई तो उसमें गवाही (शहादत) में आपको ही पेश किये जाते भला आप इस बात का क्या प्रमाण बतला सकते?
७. कई भक्त यह भी कहते हैं कि दादाजी ने भक्तों की हुंडियां स्विकारी