________________
१३७
खर-तरों की बातें
श्री उद्योतनसूरि के विषय की बातें १. कई खरतर कहते हैं कि उद्योतनसूरि ने ८४ गच्छों की स्थापना की।
२. कई खरतर कहते हैं कि उद्योतनसूरि ने श्री शत्रुञ्जय के सिद्धबड़ के नीचे ८३ अन्यगच्छीय साधुओं को आचार्य बनाया।२
३. कई खरतर कहते हैं कि लुकड़िया बड़ के नीचे केवल एक वर्धमानसूरि को ही आचार्य बनाया।३
४. कई खरतर कहते हैं कि पहले वर्धमानसूरि को आचार्य बना कर १. उद्योतनसूरिः अस्माच्चतुराशीतिगच्छस्थापका जाताः ।
_ 'खरतर' पट्टावली, पृष्ठ २० २. गुरुभिरर्पितच्चूर्णं मन्त्रयित्वा त्र्यशीतेः शिष्याणां मस्तके निक्षिप्तं ततः प्रभाते श्रीगुरुभिः
स्वस्य अल्पायु ज्ञात्वा तत्रेव अनशनं कृत्वा स्वर्गतिः प्राप्ता अथतेत्र्यशीतिरेपि शिष्याः आचार्यपदं प्राप्य पृथग्विहार चक्रुः।
बाबु पूर्ण. सं. खरतर-पट्टावली, पृष्ठ २० श्री उद्योतनसूरि इनके निज शिष्य चैत्यवास छोड़ के आये भये वर्धमानसूरि, ८३ दूसरे २ थाविरों के शिष्य जिनों को सिद्धवड नीचे शुभमुहूर्त में सूरिमंत्रका वासचूर्ण दिया, वो ८३ अलग अलग गच्छों की स्थापना करी, इस वास्ते खरतर गच्छ में अभी भी ८४ नंदी प्रचलित हैं, ८४ गच्छ थापन भया।
'महाजनवंश मुक्तावली, पृष्ठ १६७' एक समय उत्तम मुहूर्त देखकर आपने अपने पास में रहे हुए चौरासी शिष्यों को एक ही समय में आचार्य पद दिया। उन चौरासी आचार्यों से चौरासी गच्छों की स्थापना हुई।
'युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि, पृष्ठ ९' एक खरतर दूसरे २ थाविरों के ८३ शिष्य बतलाते हैं, तब दूसरे खरतर उद्योतनसूरि निज के ८४ शिष्य बतलाते हैं तथा एक सिद्धवड़ तो दूसरा लंकड़ियावड़ कहते हैं, यह तो खरतरों की सत्यता (।) है। परन्तु इसमें न तो ८३ गच्छ की बात है और न ८४ गच्छ की। खरतर ८४ गच्छ की बात कहां से लायें ?
'लेखक' ३. लंकडियावड़वृक्षाधःस्थापितोवर्धमानसूरिः श्रीउद्योतनसूरिभि ।
"बा. पू. सं. खरतर पट्टावली, पृष्ठ ४३"