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उपरोक्त निर्णय से खरतरगच्छ के अलावा तपागच्छ, उपकेशगच्छ, आंचलगच्छ आदि सभी की मान्यता है कि खरतर शब्द की उत्पत्ति जिनदत्तसूरि की प्रकृति के कारण हुई है और यह मानना न्याय संगत भी है।
अन्त में खरतरगच्छीय विद्वद् समाज से निवेदन करूँगा कि आप इस छोटी सी किताब को आद्योपान्त ध्यानपूर्वक पढ़ें। यदि मेरी ओर से किसी प्रकार की भूल हुई हो तो आप सप्रमाण सूचना करें कि उसका मैं द्वितीयावृत्ति में ठीक सुधार करवा दूं। यदि इसके उत्तर में कोई सज्जन किताब लिखना चाहें तो भी कोई हर्ज नहीं है क्योंकि ऐसे विषय की ज्यों ज्यों अधिक चर्चा की जाय त्यों त्यों इसमें विशेष तथ्य प्राप्त होता जायेगा और आखिर सत्य अपना प्रकाश किये बिना कदापि नहीं रहेगा, पर साथ में यह बात भी लक्ष्य बाहर न रहे कि आज कल जमाना सभ्यता का है, विद्वद् समाज में प्रमाणों का प्रेम है, सभ्यता एवं सत्यता की ही कीमत है।
इति खरतरगच्छोत्पत्ति
समाप्तम्