________________
१०९
लिखा है उसका सार यह है कि जिनदत्तसूरि के बनाए हुए गणधर सार्द्धशतक नामक ग्रन्थ पर जिनपतिसूरि के शिष्य सुमतिगणि ने बृहद्वृत्ति रची है जिसके एक पैरेग्राफ में जिनवल्लभसूरि का वर्णन है जिसमें जिनवल्लभसूरि ने चित्तौड़ के किले में रह कर भगवान महावीर के गर्भापहार नामक छट्ठे कल्याणक की प्ररूपणा की इत्यादि। दूसरे पैरेग्राफ में जिनदत्तसूरि के विषय में लिखा है कि जिनदत्तसूरि का स्वभाव ऐसा था कि उनको कोई भी व्यक्ति प्रश्न पूछता तो वे मगरुरी के साथ उत्तर देते थे; इसलिये उनको लोग खरतर - खरतर कहने लग गये थे; अतः खरतर मत की उत्पत्ति वि. सं. १२०४ में जिनदत्तसूरि से हुई ।
इस विषय में पाश्चात्य संशोधकों का भी यही खयाल है कि खरतर मत की उत्पत्ति वि. सं. १२०४ में जिनदत्तसूरि से ही हुई है जैसे कि :
डॉक्टर बुलर अपनी रिपोर्ट पृष्ठ १४९ पर लिखता है कि :
"The Kharatara sect then arose according to an old Gatha in Samvat 1204. Jinadatta was a proud man and even in his pert answers to others mentioned by Sumatigani, pride can be clearly detected. He was therefore called Kharatara by the people, but he gloried in the new appellation and willingly accepted it."
एशियाटिक सोसायटी के रिपोर्ट पृष्ठ १३९ पर लिखा है कि :
In this Dharamasagar tries to prove that it owed its rise not to Jineshwara the pupil of Vardhmana in Samvat 1024 as is commonly believed, but to Jinadatta in Samvat 1204. जैन धर्म नो प्राचीन इतिहास, भा. २, पृष्ठ १८
१.
इति खरतरमतोत्पत्ति भाग चौथा समाप्तम्
गणधर सार्द्धशतक ग्रन्थ के रचयिता जिनदत्तसूरि थे और उनका स्वर्गवास वि. सं. १२११ में हुआ, तब उस पर बृहद्वृत्ति निर्माण कर्ता सुमति गणि के गुरु जिनपतिसूरि का आचार्य पद का समय वि. सं. १२२३ का है, अतः उस मूल ग्रन्थ और उस पर बृहद्वृत्ति का समय निकटवर्ती कहा जा सकता है ।