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प्रतिक्रमण कहते हैं। इसी भांति एक अधिक मास को भी लुनमास समझ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण कर लेना चाहिये । विशेष खुलासा देखो ‘प्रवचन परीक्षा हिन्दी अनुवाद' नामक ग्रंथ में ।
११. प्रत्याख्यान १. श्रावक शाम को तिविहार के पच्चक्खान करते हैं उनके लिये रात्रि में कच्चा पानी का त्याग नहीं होता है पर खरतर कच्चा पानी पीने वालों को दुविहार के ही प्रत्याख्यान करवाते हैं और कहते हैं कि तिविहार के प्रत्याख्यान करने वालों को रात्रि में अचित पानी पीना चाहिये, फिर ऐसे भी कुतर्क करते हैं कि तिविहार उपवास में भी कच्चा पानी पीना खुल्ला रहता हो तो तिविहार उपवास में भी कच्चा पानी क्यों नहीं पी लिया जाय? पर उन जैनागमों के अनभिज्ञों को इतना भी ज्ञान नहीं है कि जिस पानी को पीना खुल्ला रक्खा जाता है और उसमें पानी के छ: आगार कहा जाता है वह अचित पानी पीता है और जिसको पानी के छ: आगार नहीं कहा जाता है वह सचित पानी पी भी सकता है।
२. श्रावकों के तिविहार उपवास तथा एकासना आंबिल के प्रत्याख्यान में पानी के छ: आगार' कहना लिखे होने पर भी खरतर पानी के आगार नहीं कहते
१२. भक्ष्याभक्ष्य शास्त्रों में पानी में पकाये हुये पदार्थों अर्थात् सचलित होने से उसे अभक्ष्य बतलाया है। उसको खरतर लोग खा जाते हैं और संगरियो आदि में किसी स्थान पर विद्वल नहीं कहा है उसको विद्वल बतलाते हैं। इस विषय को विस्तार से देखो प्रवचनपरीक्षा नामक ग्रन्थ में ।
१३. श्रावक की प्रतिमा श्रावक को प्रतिमावाहन का किसी सूत्र में निषेध नहीं किया है पर खरतरों ने पंचारा का नाम लेकर श्रावक को प्रतिमावाहन करने का निषेध कर दिया पर
१. 'अचित भोइयाणं सढाण मुणीणं हुंति आगारा पाणस्स य छच्चैव उ निसिनो तिविहे सचित्ताण'॥
लघुप्रवचनसारोद्धार कर्ता चन्द्रसूरि मलधार तह तिविह पच्चक्खाणे भणंति अ पाणग छ आगारा दुविहारे अचित्तभोइणो तहय फासुजले ।
प्रत्याख्यान भाष्य कर्ता देवेन्द्रसूरि