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झगड़ना जानता है, जिस पुस्तक को छपे आज ३३ वर्ष हो गुजरा है किसी ने चूं तक भी नहीं किया। यदि जैन समाज इन बातों को नहीं जानता हो तो मैं आज एक दो उदाहरण आपके सामने रख देता हूँ।
"वि. सं. १६५२ में इनके मंत्री मेहता कर्मचन्द आदि कुछ लोगों ने इनको मारने की और इनके स्थान में इनके पुत्र दलपतसिंहजी को गद्दी पर बिठाने की साजिश की । परन्तु यह भेद खुल गया। इस पर कर्मचन्द भाग कर अकबर की शरण में चला गया और उसे रायसिंहजी की तरफ से भड़काने लगा। अकबर ने भी उसके कहने में आकर बीकानेर राज्य के भरथनेर आदि कई परगने राजकुमार दलपतसिंहजी को जागीर में दे दिये। इसी दीन से बाप बेटों में अनबन शुरु हुई। दलपतसिंहजी ने राज्य के कई परगनों पर कब्जा कर लिया। जिस समय वि. सं. १६६४ में रायसिंहजी दिल्ही गये उस समय कर्मचन्द मृत्युशय्या पर पड़ा था। अतः ये भी उससे मिलने को गये और उसका अन्तिम समय निकट देख बड़ा शोक प्रकट किया। जब कर्मचंद मर गया तब उसके पुत्रों को भी इन्होंने बहुत कुछ दिलासा दिया।
इसी बीच वि. सं. १६६२ में बादशाह अकबर मर चुका था और जहांगीर दिल्ही के तख्त पर बैठा था। परन्तु वह भी इनसे नाराज हो गया, इस लिये यह लौट कर बीकानेर चले आये।"
भारत के प्राचीन राजवंश, भाग तीसरा, पृष्ठ ३२७ मंत्री कर्मचंद को बीकानेर नरेश ने क्यों निकाल दिया इसका कारण तो आपने पढ़ लिया, पर मंत्री कर्मचन्द बादशाह अकबर के पास आकर क्या करता था और बादशाह अकबर उस पर क्यों प्रसन्न रहता था जिसके लिये एक किताब में लिखा है कि :
___ "बादशाह के यहां नौ रोज के जलसों में मीनाबाजार लगता था, जिसमें अमीरों की औरतें भी बुलाई जाती थी। पृथ्वीराज ने अपनी रानी
१. कहते हैं कि कर्मचंद ने मरते समय अपने पुत्रों को समझा दिया था कि वे राजा
रायसिंहजी के प्रलोभन में पड़ कर कभी बीकानेर न जावें । राजाजी ने जो शोक प्रकाशित किया है वह केवल इस कारण से है कि वे मुझ से बदला न ले सके और पहले ही मेरा अन्त समय निकट आ पहुंचा है। इस नाराजी का कारण हम ऊपर मछली के लेख में लिख आये हैं कि राजा रायसिंह खरतरयति मानसिंह से जहाँगीर के राज की अवधि पूछता है इत्यादि परन्तु इस षडयंत्र का भेद जहागीर को मिल जाने से वह सख्त नाराज था।