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चुका है। और मानसिंह उन्हीं तीन चार महीने में कोढ़ी हो गया। उसके अंग प्रत्यङ्ग गिरने लगे। वह अब तक अपना जीवन बीकानेर में ऐसी दुर्दशा से व्यतीत कर रहा था कि जिससे मृत्यु कई अंशों में उत्तम थी। इन दिनों में जो मुझको उसकी याद आई तो उसके बुलाने का हुक्म दिया । उसको दरगाह में लाते थे पर वह डर के मारे रास्ते में ही जहर खाकर नरकगामी हो गया।
जब मुझ भगवद्भक्त की इच्छा न्याय और नीति में लीन हो तो जो कोई मेरा बुरा चेतेगा वह अपनी इच्छा के अनुसार ही फल पावेगा।
सेवड़े हिन्दुस्तान के बहुधा नगरों में रहते हैं। गुजरात देश में व्यापार और लेनदेन का आधार बनियों पर है इस लिये सेवड़े यहाँ अधिकतर हैं।
मन्दिरों के सिवाय इनके रहने और तपस्या करने के लिये स्थान बने हुये हैं जो वास्तव में दुराचार के आगार हैं । बनिये अपनी स्त्रियों और बेटियों को सेवड़ों के पास भेजते हैं, लज्जा और शीलवृत्ति बिल्कुल नहीं है। नाना प्रकार की अनीति और निर्लज्जता इनसे होती है। इस लिए मैंने सेवड़ों के निकालने का हुकम दे दिया है और सब जगह आज्ञापत्र भेजे गये हैं कि जहाँ कहीं सेवड़ा हो मेरे राज्य में से निकाल दिया जावे।" ।
इस लेख में एक तो लिखा है कि मानसिंह रास्ते में ही डर के मारे जहर खाकर मर गया और दूसरा लिखा है कि मेरे राज में आने की मनाई कर दी। इस विषय में खरतर मत वाले क्या कहते हैं ?
ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह नामक पुस्तक खरतरों की तरफ से हाल ही में मुद्रित हुई है, जिसके पृष्ठ १५० पर जिनराजसूरि का रास छपाया है। उसमें लिखा है कि :
बीकानेर थी चलिया, मनह मनोरथ फलिया । साधु तणइ परिवारइ, 'मेडतई' नयरि पधारइ ॥६॥ श्रावक लोक प्रधान. उच्छव हआ असमान । श्रीगच्छनायक आयउ, सिगले आनन्द पायउ ॥ ७ ॥ तिहाँ रह्या मास एक, दिन-दिन बधतई विवेक । चलिवा उद्यम कीधउ, 'एक-पयाणउ' दीधउ ॥ ८ ॥ काल धर्म तिहाँ भेटइ, लिखत लेख कुण मेटई । 'श्री जिनसिंह' गुरुराया, पाछा 'मेडतई' काया ॥९॥ सइंमुखि लीधउ संथारउ, कीधउ सफल जमारो । शुद्ध मनइ गहगहता, 'पहिलइ देवलोक' पहुता ॥१०॥