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श्लोक मानते हैं तब जयवीयराय के दो श्लोक कहकर तीन श्लोक छोड़ देते हैं।
२. वादीवैताल' शान्तिसूरि की बनाई बृहद्शान्ति में खरतरों ने अपने मताग्रह से कई नये पाठ मिला दिये हैं जिसको किसी गच्छवालों ने मंजूर नहीं किया।
७. कल्याणक १. भगवान् महावीर के च्यवन, जन्म, दीक्षा, ज्ञान और निर्वाण एवं पांच कल्याणक मूलसूत्रों में एवं हरिभद्रसूरि के पंचासक में तथा अभयदेवसूरि की टीका में स्पष्टतया माने हैं पर जिनवल्लभसूरि ने वि. सं. ११६४ के आश्विनकृष्णत्रयोदशी के दिन चितौड़ में गर्भापहार नामक छटे कल्याणक की उत्सूत्र प्ररुपणा कर डाली, जिसको खरतर आज पर्यंत मानते हैं और उस उत्सूत्र की पुष्टि के लिये आगमों के झूठे अर्थ कर भद्रिकों को बहकाते हैं। पर खास खरतरों के माननीय ग्रन्थ जिनदत्तसूरि रचित 'गणधरसार्द्धशतक' की बृहद्वृत्ति आदि को नहीं देखते हैं कि वे खुद क्या लिखते हैं जैसे कि
१. चित्तौड़ में जाकर जिनवल्लभसूरि ने चामुण्डा देवी को प्रतिबोध किया और महावीर के गर्भापहार नामक छटे कल्याणक को प्रगट किया।
'गणधर सार्द्धशतक लघुवृत्ति' २. जिनवल्लभसूरि ने चित्तौड़ में कन्धा ठोककर छट्ठा कल्याणक को प्रकट किया।
'गणधर सार्द्धशतक बृहद्वृत्ति' ३. जिनवल्लभसूरि ने चित्तौड़ में चातुर्मास किया। वहाँ आश्विन कृष्णा त्रयोदशी को महावीर के गर्भापहार नामक छटे कल्याणक के अक्षर सूत्र में मिले, अतः उन्होंने वीर के गर्भापहार नामक छट्ठा कल्याणक की प्ररुपणा की इत्यादि ।
'गणधर सार्द्धशतकान्तर्गत प्रकरण' इत्यादि खरतरों के खास घर के प्रमाणों से ही सिद्ध होता है कि जिनवल्लभसूरि ने महावीर के गर्भापहार नामक छटे कल्याणक की नयी प्ररुपणा की थी। यही कारण है कि उस समय के संविग्नसमुदाय और असंविग्नसमुदाय ने जिनवल्लभ को संघ से बहिष्कृत कर दिया था। इस विषय में देखो खरतरमतोत्पत्ति भाग तीसरा। १. वादीवैताल शान्तिसूरि के बनाये चैत्यवंदन बृहद् भाष्य में जयवीयराय की दो
गाथाओं के साथ 'वारिज्जइ' तथा 'दुःक्खक्खओ कम्मक्खओ' की गाथा कहना लिखा है। पूर्वोक्त आचार्य की बनाई बृहद्शांति तो खरतर मानते हैं पर उपरोक्त दो गाथा नहीं मानते हैं। वह नये मत की विशेषता है।