________________
२९९
चतुर्थे कृत्प्रत्ययाध्याये तृतीयः कर्मादियादः २९९
१०७६. अदोऽनन्ने [४।३१७१] [सूत्रार्थ
अन्नभिन्न नाम पद के उपपद में रहने पर 'अद भक्षणे' (२।१) धातु से 'क्विप्' प्रत्यय होता है।।१०७६।
[दु० वृ०]
अनन्ने नाम्न्युपपदेऽदः क्विब् भवति। शस्यमत्ति शस्यात्। अनत्र इति किम् ? अन्नादः। कणाद इत्यपि दृश्यते।।१०७६।
[समीक्षा]
'आमात्, शस्यात्' आदि शब्दरूपों के सिद्धयर्थ दोनों आचार्यों ने जिन क्विप्विट प्रत्ययों का विधान किया हैं, उनमें भिन्नता होने पर भी दोनों का सर्वापहारी लोप हो जाता है- इस प्रकार दोनों में समानता ही कही जाएगी। पाणिनि का सूत्र है"अदोऽनने” (अ०३।२।६८)। अत: उभयत्र समानता ही समझनी चाहिए। _ [रूपसिद्धि]
१. शस्यात्। शस्य + अद् + क्विप् + सि। शस्यमत्ति। 'शस्य' शब्द के उपपद में रहने पर 'अद भक्षणे' (२।१) धातु से प्रकृत सूत्र द्वारा 'क्विप्' प्रत्यय, सर्वापहारी लोप, समानलक्षण दीर्घ तथा विभक्तिकार्य।
२. आमात् । आम + अद + क्विप् + सि। आममत्ति। 'आम' शब्द के उपपद में रहने पर 'अद्' धातु से 'क्विप्' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत् ।।१०७६।
१०७७. क्रव्ये च [४।३।७२] [सूत्रार्थ
"क्रव्य' शब्द के उपपद में रहने पर 'अद्' धातु से 'क्विप्' प्रत्यय होता है।।१०७७।
[दु० वृ०]
क़व्ये चोपपदेऽदः क्विब् भवति। पुनर्वचनात् पक्वे - क्रव्यात्। अपक्वे तु अणेव। क्रव्यादा राक्षसाः। चतु:सूत्रीयं प्रपञ्चार्थेति।।१०७७।
[वि० प०]
क्रव्ये०। दृशिग्रहणस्य प्रयोगानुसारार्थत्वात् “क्विप् च" (४।३।६८) इत्यनेनैव सिध्यतीत्याह-चतुरित्यादि।।१०७७।
[क० च.]
क्रव्ये०। चतुर्णां सूत्राणां समाहारश्चतुःसूत्री। 'अनन्तश्च समाहारो नदादिषु निगद्यते' इत्युक्तमेव।।१०७७।
[समीक्षा]
'क्रव्यात्' शब्द के सिद्ध्यर्थ दोनों ही व्याकरणों में सर्वापहारी लोप वाले (कात०-क्विप् । पा०-विट) प्रत्यय किए गए हैं। पाणिनि का सूत्र है – “क्रव्ये च"