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चतुर्थे कृत्प्रत्ययाध्याये षष्ठः क्त्वादिपादः
५४५ २. समूलकाषं कषति। समूल+ कष्+णम्।सि। मूलेन सह वर्तमानं समूलम्, समूलं कषति। ‘समूल' शब्द के उपपद में रहने पर 'कष्' धातु से ‘णम्' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत्।।१३०१।
१३०२. शुष्कचूर्णरूक्षेषु पिषः [४।६।१७] [सूत्रार्थ
'शुष्क, चूर्ण, रूक्ष' शब्दों के उपपद में रहने पर 'पिष्ट्र संचूर्णने' (६।१२) धातु से ‘णम्' प्रत्यय होता है।।१३०२।
[दु० वृ०]
'एषु कर्मसूपपदेषु पिषतेर्णम् भवति। शुष्कपेषं पिनष्टि। एवं चूर्णपेषं पिनष्टि, रूक्षपेषं पिनष्टि। शुष्कं पिनष्टीत्यर्थः।।१३०२।
[समीक्षा]
समीक्षा द्रष्टव्य सूत्र- १३०१। पाणिनि का सूत्र है- “शुष्कचूर्णरूक्षेषु पिष:'' (अ० ३।४।३५)।
[रूपसिद्धि]
१. शुष्कपेष पिनष्टि। शुष्क+पिष्+णम्+अम्। शुष्कं पिनष्टि। “शुष्क' शब्द के उपपद में रहने पर 'पिष्ल संचूर्णने' (६।१२) धातु से प्रकृते सूत्र द्वारा' ‘णम्' प्रत्यय, उपधागुण तथा विभक्तिकार्य।
२-३. चूर्णपेषं पिनष्टि। चूर्ण+पिष्+णम्+अम्। चूर्णं पिनष्टि। रूक्षपेषं पिनष्टि। रूक्ष+ पिष्+णम्+सि। रूक्षं पिनष्टि। 'चूर्ण-रूक्ष' शब्दों के उपपद में रहने पर 'पिष्ल' धातु से ‘णम्' प्रत्यय आदि कार्य पूर्ववत्।।१३०२।।
१३०३. जीवे ग्रहेः [४।६।१८] [सूत्रार्थ
'जीव' शब्द के उपपद में रहने पर ‘ग्रह उपादाने' (८।१४) धातु से ‘णम्' प्रत्यय होता है।।१३०३।
[दु०वृ०] जीवे कर्मण्युपपदे ग्रहेणम् भवति। जीवग्राहं गृह्णाति। जीवं गृह्णातीत्यर्थः।।१३०३। [समीक्षा]
'जीवग्राहम्, अकृतकारम्, समूलघातम्' इन तीन शब्दों के सिद्धयर्थ कातन्त्रकार ने तीन सूत्र बनाए हैं, जबकि पाणिनि का एतदर्थ एक ही सूत्र है“समूलाकृतजीवेषु हन्कृञ्ग्रहः'' (अ० ३।४।३६)। कातन्त्रकार ने तीन पृथक् सूत्रों की रचना मन्दमति वाले अध्येताओं को सरलता से बोध हो- इस उद्देश्य से की है। अत: उसमें गौरव न मानकर प्राय: समानता ही माननी चाहिए।