Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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یہ لہ لہ
परिशिष्टम्-८ १२०७. प्रयम्य
११४/१२३९. प्रस्तीतवान् ९२,६५३ १२०८. प्रयुक् ३०२/१२४०. प्रस्तीमः
६५३ १२०९. प्रयोज्यो भृत्य: ५९८/१२४१. प्रस्तीमवान्
६५३ १२१०. प्रलम्भः
___५५/१२४२. प्रस्थम्पचो माणवक: २६५ १२११. प्रलापी
३७२/१२४३. प्रस्थाय १२१२. प्रवत्य ११३/१२४४. प्रस्थायुकः
३८२ १२१३. प्रवचनीय उपाध्यायः ४९९/१२४५. प्रस्रावः
४४२ १२१४. प्रवाच्यः
५९७/१२४६. प्रस्वेदित: १२१५. प्रवादो ३७२/१२४७. प्रहत्य
११३ १२१६. प्रवाय
९६/१२४८. प्रह्लनः १२१७. प्रवासी
३७२/१२४९. प्रह्लनवान् १२१८. प्रवाहिका ४९४/१२५०. प्रतः
२१२ १२१९. प्रव्याय
९७/१२५१. प्रक्षीणः १२२०. प्रव्राज:
५९५/१२५२. प्रक्षीणमिदं छात्रस्य १२२१. प्रशंसा
४८७/१२५३. प्रक्षीणवान् १२२२. प्रशमय्य
७९/१२५४. प्रक्षीय १२२३. प्रशान् १०३,६०६/१२५५. प्रक्षेदित: १२२४. प्रशामौ
६०८/१२५६. प्रातरित्वा १२२५. प्रश्न: १०६,४७८/१२५७. प्राप्तमनेन
५७८ १२२६. प्रष्ठवाट
२८९/१२५८. प्राप्तो ग्रामं भवान् । ५७७ १२२७. प्रष्ठौहः
२८९/१२५९. प्राप्तो ग्रामो भवता ५७७ १२२८. प्रसत्य ११३,१२५/१२६०. प्रावरः
४५१ १२२९. प्रसवी ३८४|१२६१. प्रावार:
४५१ १२३०. प्रसाय १२५/१२६२. प्रियंवदः
२६७ १२३१. प्रसुप्तं भवता ५७७/१२६३. प्रियः १२३२. प्रसुप्तो भवान् ५७७/१२६४. प्रियकार:
२६९ १२३३. प्रसूः ३०२/१२६५. प्रियङ्करः
२६९ १२३४. प्रस्कन्दनः ५७९/१२६६. प्रियङ्करणं शीलम् २८४ १२३५. प्रस्तार:
४४० १२६७. प्रियम्भविष्णुः २८७ १२३६. प्रस्तारपङ्क्तिः ४४१/१२६८. प्रियम्भावुक:
२८७ १२३७. प्रस्ताव: ४४२/१२६९. प्लवगः
२७४ १२३८. प्रस्तीत: १२,१००,६५३/१२७०. फलेग्रहिः
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مہ
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