Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 799
________________ ७६१ ५८ ५८ ५८ १९५ प परिशिष्टम्-८ १४६३. याव्यम् १९५/१४९५. रात्रिञ्चरः १४६४. युग्यम् १९१/१४९६. रात्रिमट: १४६५. युङ् ३०२/१४९७. रात्र्यट: १४६६. युतः ६१६१४९८. राप्यम् १४६७. युतवान् ६१६/१४९९. रिपुङ्गिलः १४६८. युत्वा ६१६/१५००. रुग्ण: १४६९. यूतिः ४८१/१५०१. रुग्णवान् १४७०. योक्त्रम् ४०४|१५०२. रुच्यः १४७१. योगी ३६९/१५०३. रुतः १४७२. योत्रम् ४०४/१५०४. रुतवान् १४७३. रक्त्वा ३४/१५०५. रुत्वा १४७४. रक्तवा ३४/१५०६. रुषित: १४७५. रजक: ११७,२२१,१५०७. रुष्टः १४७६. रजकी ११७,२२१/१५०८. रूक्षपेषं पिनष्टि १४७७. रजोग्रहिः २५७/१५०९. रेखा १४७८. रज्जुच्छित् ३०२/१५१०. रेट १४७९. रथन्तरम् २७१/१५११. रैपोषम् १४८०. रधिष्यति ६१९/१५१२. रोगः १४८१. रन्ध्रापकर्ष पयः पिबति ५६१/१५१३. रोचन: १४८२. ररज्वान् ३४२/१५१४. रोचमानः १४८३. रक्ष्णः ४७८/१५१५. रोचिष्णुः १४८४. रागः ११७१५१६. रोच्यः १४८५. रागी ११८,३६९/१५१७. रोट् १४८६. राजकृत्वा ३३२/१५१८. रोषिता १४८७. राजभोजना: शालयः ४९९/१५१९. रोष्टा । १४८८. राजयुध्वा ३३२/१५२०. लग्नं सक्तम् १४८९. राजविशायः ४५७१५२१. लग्नः १४९०. राजसूयः २००१५२२. लग्नवान् १४९१. राजाच्छादनानि ४९९/१५२३. लभ्यम् १४९२. राजोपशयः ४५७/१५२४. लयः १४९३. राट् ३०२/१५२५. ललाटन्तपः १४९४. रात्रिचरः ५८/१५२६. लव: ५९३,६४७ ६४७ १९० ६१६ ६१६ ६१६ ६४१ ६४१ ५४५ ४९० २९६ ५४९ ४२३ ३७८ ३५० ३६३ ५९७ २९६ ६१८ ६१८ ६३६ ६३० ६३० १६९ ४६० २६४ ४६०

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