Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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परिशिष्टम्-८
७६५ १७१५. व्यतिषङ्गः ५९४|१७४७. शयितम्
५०० १७१६. व्यथा
४९० १७४८. शयितवान् १७१७. व्यध:
४६२/१७४९. शयितव्यं भवता ५७५ १७१८. व्यर्णः ६४० १७५०. शयित्वा
२८ १७१९. व्यवस्था
४९२/१७५१. शयितो भवान् ५७९ १७२०. व्याधः २१६/१७५२. शय्या
४८४ १७२१. व्याभाषक:
३७५/१७५३. शय्योत्थायं धावति ५६१ १७२२. व्याक्रोशी ४५९/१७५४. शरलाव:
२३० १७२३. व्यावभाषी ४५९/१७५५. शरारुः
३९९ १७२४. व्रजः ५०३/१७५६. शर्मा
६१७. १७२५. व्रजोपरोधम् ५६१/१७५७. शस्त्रम्
४०४ १७२६. व्रज्या ४८२/१७५८. शस्यात्
२९९ १७२७. वश्चित्वा
६२३/१७५९. शान्तः १०३,६३०,६४३ १७२८. शंवदः
२४७/१७६०. शान्तवान् १०३,६३० १७२९. शंवरः २४७/१७६१. शान्ति:
१०३ १७३०. शकृत्करिः २५५/१७६२. शान्त्वा
१०४,६२२ १७३१. शक्तो भोक्तुम् ५१४|१७६३. शायिका
४९५ १७३२. शक्यम् १६९/१७६४. शायित:
३३६ १७३३. शक्रहः २७७/१७६५. शायितवान्
३३६ १७३४. शङ्करः २४६/१७६६. शारुकः
३८२ १७३५. शतंदायी ५१७/१७६७. शार्यम्
१९४ १७३६. शत्रुन्तपः २७१/१७६८. शाव:
६५८ १७३७. शद्रुः ३८७/१७६९. शावौ
६५८ १७३८. शब्दनः ३७७/१७७०. शिशीर्वान्
३४३ १७३९. शमित: ६४३/१७७१. शिष्यः
१८३ १७४०. शमित्वा ६२२/१७७२. शीतो वायः
९३ १७४१. शमी
३६८१७७३. शीनं घृतम् ९३,६४९ १७४२. शम्भव:
२४६/१७७४. शीनवद् घृतम् ९३,६४९ १७४३. शम्भुः
४०२/१७७५. शीर्णः १४१,६४५ १७४४. शयाना भुञ्जते यवना: ३४८/१७७६. शीर्णवान् १४१, ६४५ १७४५. शयितं भवता ५७९/१७७७. शीर्षघाती
२७९ १७४६. शयित: ३५/१७७८. शुनिन्धयः
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