Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 803
________________ ३५ परिशिष्टम्-८ ७६५ १७१५. व्यतिषङ्गः ५९४|१७४७. शयितम् ५०० १७१६. व्यथा ४९० १७४८. शयितवान् १७१७. व्यध: ४६२/१७४९. शयितव्यं भवता ५७५ १७१८. व्यर्णः ६४० १७५०. शयित्वा २८ १७१९. व्यवस्था ४९२/१७५१. शयितो भवान् ५७९ १७२०. व्याधः २१६/१७५२. शय्या ४८४ १७२१. व्याभाषक: ३७५/१७५३. शय्योत्थायं धावति ५६१ १७२२. व्याक्रोशी ४५९/१७५४. शरलाव: २३० १७२३. व्यावभाषी ४५९/१७५५. शरारुः ३९९ १७२४. व्रजः ५०३/१७५६. शर्मा ६१७. १७२५. व्रजोपरोधम् ५६१/१७५७. शस्त्रम् ४०४ १७२६. व्रज्या ४८२/१७५८. शस्यात् २९९ १७२७. वश्चित्वा ६२३/१७५९. शान्तः १०३,६३०,६४३ १७२८. शंवदः २४७/१७६०. शान्तवान् १०३,६३० १७२९. शंवरः २४७/१७६१. शान्ति: १०३ १७३०. शकृत्करिः २५५/१७६२. शान्त्वा १०४,६२२ १७३१. शक्तो भोक्तुम् ५१४|१७६३. शायिका ४९५ १७३२. शक्यम् १६९/१७६४. शायित: ३३६ १७३३. शक्रहः २७७/१७६५. शायितवान् ३३६ १७३४. शङ्करः २४६/१७६६. शारुकः ३८२ १७३५. शतंदायी ५१७/१७६७. शार्यम् १९४ १७३६. शत्रुन्तपः २७१/१७६८. शाव: ६५८ १७३७. शद्रुः ३८७/१७६९. शावौ ६५८ १७३८. शब्दनः ३७७/१७७०. शिशीर्वान् ३४३ १७३९. शमित: ६४३/१७७१. शिष्यः १८३ १७४०. शमित्वा ६२२/१७७२. शीतो वायः ९३ १७४१. शमी ३६८१७७३. शीनं घृतम् ९३,६४९ १७४२. शम्भव: २४६/१७७४. शीनवद् घृतम् ९३,६४९ १७४३. शम्भुः ४०२/१७७५. शीर्णः १४१,६४५ १७४४. शयाना भुञ्जते यवना: ३४८/१७७६. शीर्णवान् १४१, ६४५ १७४५. शयितं भवता ५७९/१७७७. शीर्षघाती २७९ १७४६. शयित: ३५/१७७८. शुनिन्धयः २६०

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