Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 820
________________ सांकेतिक शब्द अ० कलाप ० कात ० उ० परिशिष्टम् - १० = साङ्केतिकशब्दविवरणम् पूर्णशब्द कात ० परि० का०धा० व्या० का० परि० का०वृ० काव्या० कु० सं० छा० उ० दु० टी० दु० वृ० द्र० पा०, पाठा० पु० परि० पृ० अष्टाध्यायी (पाणिनीयाष्टाध्यायी या पाणिनीय व्याकरण ) कलापव्याकरणम् (तिब्बतीसंस्थान-सारनाथ से १९८८ ई० में प्रकाशित) कातन्त्रोणादिसूत्रम् (तिब्बती संस्थान - सारनाथ से १९९२ में प्रकाशित ) कातन्त्रपरिशिष्टम् काशकृत्स्नधातुव्याख्यान कातन्त्र परिभाषा काशिकावृत्ति: काव्यादर्शः कुमारसम्भवमहाकाव्यम् छान्दोग्योपनिषद् दुर्गटीका दुर्गवृत्तिः द्रष्टव्यम् पाठान्तरम् पृष्ठसंख्या १२,३३,११९,१२८ ५१६,५५९ (प्रत्येक सूत्र की समीक्षा में द्रष्टव्य)। ५४७ पृष्ठम् १०४, १०७, ४०४, ४१०. ४१२, ५८४, ५९३, ६०७ १२१, ४८९ १४० ४,१३,२७,६०, ६३, ७७, ७८, ८१, ९१, १०१, १०७, १११, १२५, १२६, १३२, १५९, १६३, १६९, १८३, २२७, २३४, ३११, ३२२. ३५१, ४१२, ४३२, ४३३, ५२७, ५७८, ५७९, ५८५, ६१४, ६४२, ६५३ ६७, ७०, १५९, ३१२ २९० २८८ १४० प्रायः प्रत्येक सूत्र की व्याख्या सभी सूत्रों की व्याख्या ४७० इत्यादि । ७०, ३६०, ४२६ इत्यादि पुरुषोत्तमदेवीयपरिभाषावृत्तिः २३५ १५६, १५.७, ५४७

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