Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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कातन्त्रव्याकरणम् ४८७. षष्ठीनिषेधार्थम २०८ ५१७. सामान्यार्थम्
५१८ ४८८. संग्रहपक्षे
५२४ ५ १८. सार्वधातुकार्थः ३४३, ३५४ ४८९. संज्ञापूर्वकत्वात् ११० ५१९. साहचर्यम् ४९०. संज्ञाशब्दा एते० ५१७ ५२०. साहित्यम्
४२१ ४९१. संज्ञाशब्दा हि० ८५२१. सिंहावलोकनन्या० ५२५ ४९२. संज्ञाशब्दोऽयं ५९७ ५२२. सिद्धान्तः १४, १५, ५४, ४९३. संहिता निरतिशयमा० ३५३ ६१, १२२, १३४, १४५, १६१, ४९४. सङ्कलितार्थ:
६११ १८५, २५०, २८६, ३१२, ३४१, ४९५. सङ्गमनं मैत्री १७६ ३४५, ५२६, ५३१, ५८२, ५९१ ४९६. सन्निपातलक्षण: १३,१३३ |५२३. सिद्धान्तदर्शनात् २२८ ४९७. समाधि:
५७१ ५२४. सिद्धान्तविशेष: ५४७ ४९८. समासविकल्पार्थम् ५६७ ५२५. सिद्धान्तान्तरम् ७३, ५१२ ४९९. समाहार: ३३२ ५२६. सिद्धान्ते
६०७ ५००. समीपलक्षणा षष्ठी १७१ ५२७. सिद्धिपाद: १, १४१ ५०१. समुदाये शक्ति; ३ ५२८. सिद्धे सत्यारम्भो० १०० ५०२.समुच्चयमात्रे २१ ३१, ३९ ५२९. सुखप्रतिपत्त्यर्थः ३७, ९५,१७८, ५०३. सम्पादकीयसमीक्षा १३७, १४१
१८३, २१३, ४५८ २२१, २२५, ३३७, ४२२, ५३०. सुखप्रतिपत्यर्थम् २५, १४९, ५२१, ६५८
१६५, २३२ ५०४. सम्भक्तिश्च मैत्रीकरणम् १७३ ५३१. सुखार्थ: ८, ९६, १३१, १६६, ५०५. सम्मोहः
२८५, २९४, ३०८, ३१७, ३४८, ५०६. सर्वमनवद्यम् ५२६ ४०५, ४९७, ६१२, ६२०, ६२७ ५०७. सर्वसादृश्यार्थम
४५३२. सुखार्थम् ३, ४, १८, २९, ५०८. सर्वे गत्यर्था ज्ञानार्थाः ४७३ ४१, ४२, ४७, ४८, ५०, ५०९. सर्वे विधयो विक० ९७ ५४, ६०, ६१, ७३, ७६, ५१०. सहभर्तृका गर्भिणी
९८, ११०, १११, १४५, ५११. सागरोक्तिः
५११ १४९, १५२, १७८, १७९, ५१२. साधनायत्तत्वात् क्रियायाः ६० १८१, १८३, १९२, २०४, ५१३. साध्यक्षतिः
२१२, २३३, २७१, २७६, ५१४. सानिध्यम्
४५ ३२४, ३३१, ३५४, ३६०, ५१५. सामान्यव्यापार:
३२० ३८०, ३९३, ४०३, ४१८, ५१६. सामान्याभिघातार्थः १९२ ४२१, ४३०, ४३४, ४४१,
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