Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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परिशिष्टम्-९
७७९ ४२९. विचित्रा हि सूत्रस्य कृति: ११०, ५२२ | ४५८. व्यवत्या जात्या चेकम् ५५६ ४३०. विधि:
६०८/४५९. व्यवस्थितवाधिकारात् ३७ ४३१. विपरीतनियम:२५, ७२, १५३ | ४६०. व्यवस्थितविभाषा १३०, १५९ ४३२. विप्रतिषेधः
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२१९, ६०५, ६५१ ४३३. विभक्तिविपरिणाम: ३८,१४४, ३५१ ४६१. व्याख्यानतो विशेषार्थ० ६०९ ४३४. विमोहनमाकुलीकरणम् ६२४ ४६२. व्यावृत्तिः ८६, ९९, १३६ ४३५. विवक्षा ४०७, ५९० /४६३. व्युत्पत्तिपक्षे ४३६. विवक्षा गरीयसी ४०८ |४६४. व्रतं शास्त्रविहितो नियमः ३१३, ४३७. विवक्षातो हि कारकाणि ४२८
३१४ ४३८. विवक्षायाम् २६९, ३७२ ४६५. शक्तिः कारकम् ४२८, ५२७ ४३९. विवक्षावशात् ४१,४२८, ४७६ |४६६. शङ्कानिरासार्थम् ३९६ ४४०. विवरणलाघवार्थम् ४३५ | ४६७. शपथ: ४४१. विवेकः
३७० | ४६८. शब्दलाघवम् ४४२. विशेषः परमते ६३८ | ४६९. शब्दशक्तिस्वभावात् । १८५ ४४३. विशेषणविशेष्यभावस्य० ५८९ | ४७०. शब्दो द्विविध. ४४४. विशेषणार्थ:२०४, ३३६, ३४३, ४७१. शास्त्रातिदेश: ३, ३३८, ३३९ ३६१ | ४७२. शास्त्रीयसंज्ञा
५६५ ४४५. विशेषप्रतिपत्त्यर्थम् ५५४ ४७३. शिल्पं विज्ञानकौशलम् २२६ ४४६. विशेषार्थप्रतिपत्तिः ३५१ | ४७४. शिष्टप्रयुक्ताः
३६५ ४४७. विशेष्यविशेषण० २८८,२९० | ४७५. शिष्टप्रयोगा:
४०८ ४४८. विषयसप्तमी १५, ७२, ४७६. शिष्टैः
४५५ ७३, १५२, ५३२ |४७७. शिष्यबोधार्थ:
६४४ ४४९. विसन्धिः
९९ | ४७८. शिष्यभ्रान्ति: ४५०. वीप्सा
५६३ | ४७९. शीलं स्वभाव: ३५५,३६०,३६१ ४५१. वृत्तमिह छन्दो० ४४१ | ४८०. शेषभूता
५७१ ४५२. वृत्तिग्रन्थः ५१२ ! ४८१. श्रुतव्याख्यानम्
५५६ ४५३. वृत्करणम् ३६७, ६४६ |४८२. श्रुतिसुखार्थः
४०५ ४५४. वेदानामपि विकारा० २२६ ४८३. श्रुतेः
३२१ ४५५. वेदा नित्या: २२६ /४८४. श्लिषादय: सोपसर्गाः सकर्मका: ४५६. वैचित्र्यार्थम् २५१, ४२१,
५७७ ४५४, ४५८ |४८५. षडनुबन्धो नदादि० २४० ४५७. व्यक्त्यर्थः
४६ /४८६. षडेव गम्यादयः ४१३
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