Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 802
________________ ६०५ mr १८४ ७६४ कातन्त्रव्याकरणम् १६५३. वियामः ४६३/१६८५. वीरभूः १६५४. विराट ३०२/१६८६. वीरुत् । १६५५. विरिब्धः स्वरः ६३६/१६८७. वीरुधः १६५६. विलाषी ३७१/१६८८. वीरुधौ १६५७. विलिख: २१०/१६८९. वृक्णः १६५८. विविदिवान् ६१३/१६९०. वृक्णवान् १६५९. विविद्वान् ६१३/१६९१. वृतः १६६०. विविशिवान् ६१३/१६९२. वृतवान् १६६१. विविश्वान् ६१३/१६९३. वृत्यः १६६२. विवेकी ३७१/१६९४. वृत्यम् १६६३. विश्न: १०६,४७८/१६९५. वृत्रहा १६६४. विश्रयी ३८५/१६९६. वृत्वा १६६५. विश्राणः ६४४/१६९७. वृद्धम्मन्या १६६६. विश्राणवान् ६४४/१६९८. वृध्यम् १६६७. विश्राव: ४३९/१६९९. वृष्यम् १६६८. विश्रावी २०९/१७००. वेदः १६६९. विश्वम्भरा अवनिः २७१/१७०१. वेदना १६७०. विषखाः शिवः २९२/१७०२. वेदयः १६७१. विषयः ५०२/१७०३. वेदवित् १६७२. विष्टारपतिः ४४१/१७०४. वेदाध्यायः १६७३. विष्वव्यङ् ६०३/१७०५. वेपथुः १६७४. विस्तार: पटस्य ४४०/१७०६. वेशः १६७५. विस्फारः १२७१७०७. वेषिता १६७६. विस्फाल: १२७१७०८. वेष्टा १६७७. विस्फोरः १२७/१७०९. वैयाकरणनिकाय: १६७८. विस्फोल: १२७/१७१०. वोढव्या खलु भवता १६७९. विस्रन्भी ३७१ कन्या १६८०. विक्षाव: ४३९/१७११. वोढा कन्यायाः खलु १६८१. विक्षिपः २१० भवान् १६८२. विहङ्गमः २७३/१७१२. व्यजः १६८३. विहवः ४६८/१७१३. व्यतिबभूवानः १६८४. वीरणपुष्पप्रचारिका ४९५/१७१४. व्यतिपेचान: १८९ ५०४ ४९३ २१४ ३०२ २३० ४७६ ४२३ ६१८ ६१८ ४५५ ५१५ ५१५ ५०३ ३५१ ३४३

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