Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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कातन्त्रव्याकरणम् १६५३. वियामः
४६३/१६८५. वीरभूः १६५४. विराट
३०२/१६८६. वीरुत् । १६५५. विरिब्धः स्वरः ६३६/१६८७. वीरुधः १६५६. विलाषी
३७१/१६८८. वीरुधौ १६५७. विलिख:
२१०/१६८९. वृक्णः १६५८. विविदिवान् ६१३/१६९०. वृक्णवान् १६५९. विविद्वान्
६१३/१६९१. वृतः १६६०. विविशिवान् ६१३/१६९२. वृतवान् १६६१. विविश्वान्
६१३/१६९३. वृत्यः १६६२. विवेकी
३७१/१६९४. वृत्यम् १६६३. विश्न: १०६,४७८/१६९५. वृत्रहा १६६४. विश्रयी
३८५/१६९६. वृत्वा १६६५. विश्राणः
६४४/१६९७. वृद्धम्मन्या १६६६. विश्राणवान् ६४४/१६९८. वृध्यम् १६६७. विश्राव:
४३९/१६९९. वृष्यम् १६६८. विश्रावी
२०९/१७००. वेदः १६६९. विश्वम्भरा अवनिः २७१/१७०१. वेदना १६७०. विषखाः शिवः २९२/१७०२. वेदयः १६७१. विषयः
५०२/१७०३. वेदवित् १६७२. विष्टारपतिः ४४१/१७०४. वेदाध्यायः १६७३. विष्वव्यङ्
६०३/१७०५. वेपथुः १६७४. विस्तार: पटस्य ४४०/१७०६. वेशः १६७५. विस्फारः
१२७१७०७. वेषिता १६७६. विस्फाल:
१२७१७०८. वेष्टा १६७७. विस्फोरः
१२७/१७०९. वैयाकरणनिकाय: १६७८. विस्फोल:
१२७/१७१०. वोढव्या खलु भवता १६७९. विस्रन्भी
३७१
कन्या १६८०. विक्षाव:
४३९/१७११. वोढा कन्यायाः खलु १६८१. विक्षिपः
२१० भवान् १६८२. विहङ्गमः
२७३/१७१२. व्यजः १६८३. विहवः
४६८/१७१३. व्यतिबभूवानः १६८४. वीरणपुष्पप्रचारिका ४९५/१७१४. व्यतिपेचान:
१८९ ५०४ ४९३ २१४ ३०२ २३० ४७६ ४२३ ६१८ ६१८ ४५५
५१५
५१५ ५०३ ३५१ ३४३

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