Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 811
________________ परिशिष्टम्-९ ७७३ ९६. उत्तरार्थः ११२ |१२३. कर्म तावत् विविधम् २२७ ९७. उत्तरार्थम् २७, १७८, १२४. कर्मत्वम् ८८ १७९, २६७, ४२७, ४३०, १२५. कर्मधारयपक्षे ६७ ६२३, ६२४ १२६. कर्मशब्दः क्रियावचन: ५७५ ९८. उत्पत्तिः २८४ | १२७. कर्मादिपाद: ३३७ ९९. उत्सर्गबाधा द्विधा १६२ १२८. कवेरभिप्रायः ५२० १००. उपचार: |१२९. कामप्रकाशने ५१० १०१. उपचारपरम्परया |१३०. कारकशक्तिः ३१८ १०२. उपचारात् १६१, १९६ १३१. कारणे कार्योपचारः ५२२,५८१ ३६७, ६५२ |१३२. कारितलोप: ८८, ६४३ १०३. उपनिषद् रहस्ये ५८९ |१३३. कार्यपक्षे १५१ १०४. उपपदम् १४३, १४७, १३४. कार्यातिदेशपक्षे ४२१ |१३५. किंवदन्ती १०५. उपपदसमास: ५६६ /१३६. कुमारत्वम् ३०९ १०६. उपपदसमासविभाषार्थम् ५६४ १३७. कुमारवादी ३०५, ३०७ १०७. उपलक्षणम् २६, १४४, १३८. कुलधर्म: ३६१ ४२३ |१३९. कृच्छ्रे गहनमुच्यते ६३४ १०८. ऊर्यादयः ५८८ १४०. कृच्छं दु:खम् ६३४ १०९. ऊहः ४११ |१४१. कृभ्वस्तय: क्रियासामान्यवचना: ११०. ऋकारे त्रयः स्वरभागाः ६४४ ४२५, ४२६ १.११. ऋतः सौत्रस्य नाशङ्का ६१५ /१४२. केलिम: कर्मकर्तरीष्यते १६४ ११२. ऋषिप्रमाणात् ८९ |१४३. क्त्वाप्रत्ययादिपाद: ५२२ ११३. एकबुद्ध्यर्थम् ११४४. क्रय्यम् ६६ ११४. एकशब्द: समानार्थः ३४३ १४५. क्रिया (धात्वर्थ:) ४१५ ११५. एतन्मतमयुक्तम् ६२९ /१४६. क्रियान्तरम् ११६. एवमन्येऽप्यनुसर्तव्याः २०५ /१४७. क्रियाविशेषणम् २७२ ११७. औणादिका यथाकथंचिद्० ५७९ | १४८. क्रियाव्यतीहार: ४५८ ११८. कत्वगत्वार्थः ३६७, ४२३ |१४९. क्रियासिद्ध्यर्थम् २७६ ११९. करणम् ४६ |१५०. क्रीडायां नित्यसमास एव ४९४ १२०. कर्ता हि नाम |१५१. क्रेयम् ६६ १२१. कर्तृत्वविवक्षा |१५२. क्वन्सुपादः ४२१ १२२. कर्तृप्रतिपत्त्यर्थम् ३५८. |१५३. क्वन्सुकानपादः. ४२०, ४२२ ५६४ ३११ ५९९

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