Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 800
________________ २५२ कातन्त्रव्याकरणम् १५२७. लवक: २२५/१५५९. लोलुवः ३९२ १५२८. लवणङ्कारं भुङ्क्ते ५३७/१५६०. लोष्ट्रयाहं युध्यन्ते ५६२ १५२९. लवित्रम् ४०६/१५६१. वक्रम् ५९३ १५३०. लव्यम् ६४/१५६२. वचनकरः १५३१. लक्षितः ७५/१५६३. वचित्वा १५३२. लक्षितवान् ७५/१५६४. वञ्चित्वा १५३३. लाङ्गलग्रहः २४५/१५६५. वयम् ५९५ १५३४. लाङ्गलग्राहः २४५/१५६६. वज्रधरः २४४ १५३५. लाप्यम् १९५/१५६७. वति: ११२ १५३६. लाव्यम् १९६/१५६८. वदिता ३६१ १५३७. लिखित्वा ३१/१५६९. वध: ७,४७० १५३८. लिपिकरः २५४१५७०. वधक: १५३९. लिबिकरः २५४/१५७१. वधुम्मन्या दासी १५४०. लिम्पः २१५/१५७२. वन्ति: ११४ १५४१. लिहानाः २१/१५७३. वन्दना ४९३ १५४२. लुचित्वा ३२/१५७४. वन्दारुः ३९९ १५४३. लुञ्चित्वा ३२/१५७५. वमथुः ४७६ १५४४. लुण्टाक: ३८३/१५७६. वयिता ३८१ १५४५. लुण्टाकी ३८३/१५७७. वरः ४६० १५४६. लुभितः ६२६/१५७८. वराक: ३८३ १५४७. लुभितवान् ६२६/१५७९. वराकी ३८३ १५४८. लुभित्वा ६२४/१५८०. वराहः २७६ १५४९. लू: २९७/१५८१. वर्तनः ३७८ १५५०. लूत्वा ६१६/१५८२. वर्तिष्णुः १५५१. लून: ६१६,६४७१५८३. वर्त्म ४१२ १५५२. लूनवान् ६१६,६४७/१५८४. वर्द्धनः २०८,३७८ १५५३. लेख: ५०४/१५८५. वर्द्धिष्णुः ३६३ १५५४. लेखा ४९०१५८६. वर्या स्त्री १७४ १५५५. लेखित्वा ३१/१५८७. वर्षक: ३८२ १५५६. लेहः २१८/१५८८. वर्ण्यम् १८९ १५५७. लोब्धा ६१८/१५८९. वशंवदः २६७ १५५८. लोभिता ६१८/१५९०. वसननोपं वृष्टो देवः ५४४ ३६३

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