Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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कातन्त्रव्याकरणम् १५२७. लवक: २२५/१५५९. लोलुवः
३९२ १५२८. लवणङ्कारं भुङ्क्ते ५३७/१५६०. लोष्ट्रयाहं युध्यन्ते ५६२ १५२९. लवित्रम् ४०६/१५६१. वक्रम्
५९३ १५३०. लव्यम्
६४/१५६२. वचनकरः १५३१. लक्षितः
७५/१५६३. वचित्वा १५३२. लक्षितवान्
७५/१५६४. वञ्चित्वा १५३३. लाङ्गलग्रहः २४५/१५६५. वयम्
५९५ १५३४. लाङ्गलग्राहः २४५/१५६६. वज्रधरः
२४४ १५३५. लाप्यम् १९५/१५६७. वति:
११२ १५३६. लाव्यम् १९६/१५६८. वदिता
३६१ १५३७. लिखित्वा ३१/१५६९. वध:
७,४७० १५३८. लिपिकरः
२५४१५७०. वधक: १५३९. लिबिकरः २५४/१५७१. वधुम्मन्या दासी १५४०. लिम्पः २१५/१५७२. वन्ति:
११४ १५४१. लिहानाः २१/१५७३. वन्दना
४९३ १५४२. लुचित्वा ३२/१५७४. वन्दारुः
३९९ १५४३. लुञ्चित्वा ३२/१५७५. वमथुः
४७६ १५४४. लुण्टाक: ३८३/१५७६. वयिता
३८१ १५४५. लुण्टाकी ३८३/१५७७. वरः
४६० १५४६. लुभितः ६२६/१५७८. वराक:
३८३ १५४७. लुभितवान् ६२६/१५७९. वराकी
३८३ १५४८. लुभित्वा ६२४/१५८०. वराहः
२७६ १५४९. लू: २९७/१५८१. वर्तनः
३७८ १५५०. लूत्वा
६१६/१५८२. वर्तिष्णुः १५५१. लून: ६१६,६४७१५८३. वर्त्म
४१२ १५५२. लूनवान् ६१६,६४७/१५८४. वर्द्धनः २०८,३७८ १५५३. लेख: ५०४/१५८५. वर्द्धिष्णुः
३६३ १५५४. लेखा ४९०१५८६. वर्या स्त्री
१७४ १५५५. लेखित्वा ३१/१५८७. वर्षक:
३८२ १५५६. लेहः २१८/१५८८. वर्ण्यम्
१८९ १५५७. लोब्धा ६१८/१५८९. वशंवदः
२६७ १५५८. लोभिता
६१८/१५९०. वसननोपं वृष्टो देवः ५४४
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