Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 798
________________ ५९४ २६८ ४०४ ७६० कातन्त्रव्याकरणम् १३९९. मिति: १३०/१४३१. मृषित्वा १४००. मित्रद्विट ३०२/१४३२. मेघः १४०१. मित्रध्रुक् ३०२/१४३३. मेघङ्करः १४०२. मित्रभूः ५१७/१४३४. मेढ़म् १४०३. मित्रहू: १००/१४३५. मेदितम् १४०४. मित्वा १३०१४३६. मेदुरः १४०५. मिन्नः ४१०,६३१,६४५/१४३७. मेरुदृश्वा १४०६. मित्रवान् ६३१,६४५/१४३८. म्लास्नुः १४०७. मीढ्वान् ६१४|१४३९. यजमान: १४०८. मुखत:कारम् ५६९/१४४०. यज्ञः १४०९. मुखत:कृत्य ५६९/१४४१. यज्ञदत्तः १४१०. मुखतः कृत्वा ५६९/१४४२. यज्वा १४११. मुखतोभावम् ५७२/१४४३. यज्वानो १४१२. मुखतो भूत्वा ५७२/१४४४. यत १४१३. मुखताभूय ५७२/१४४५. यतवान् १४१४. मुञ्जन्धयः २६०१४४६. यत्करः १४१५. मुण्डयितार: ३६११४४७. यत्नः १४१६. मुरः १०९/१४४८. यथाकारम् १४१७. मुरों १०९/१४४९. यव्यङ् १४१८. मुवः १०८ १४५०. यन्तिः १४१९. मुवी १०८/१४५१. यमः १४२०. मुष्टिघातं चौरं हन्ति ५४७/१४५२. यम्यम् १४२१. मुष्टिन्धमः २६२/१४५३. यशस्करी विद्या १४२२. मुष्टिन्धयः २६२/१४५४. यष्टिग्रहः १४२३. मू: १०८,१०९/१४५५. यष्टिग्राह: १४२४. मूति: १०८/१४५६. याच्या १४२५. मूर्तः १०९/१४५७. याच्याः १४२६. मूर्तिः १०९/१४५८. यायः १४२७. मूलकेनोपदंशम् १५५,५५८/१४५९. यायजूक: १४२८. मूलकोपदंशं भुङ्क्ते १५५/१४६०. यायावरः १४२९. मूलकोपदंशम् ५५८/१४६१. यावज्जीवमधीते १४३०. मृज्यम् १८९/१४६२. यावद्वेदं भुङ्क्ते ३८८ ३३१ ३६६ ३५५ ४७८ ५१७ ३३७ ३३७ ११२ ११२ २५४ ४७८ ५३९ ६०३ ११४ ३९३ ५४१ ५४१

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