Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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कातन्त्रव्याकरणम् १३९९. मिति:
१३०/१४३१. मृषित्वा १४००. मित्रद्विट
३०२/१४३२. मेघः १४०१. मित्रध्रुक्
३०२/१४३३. मेघङ्करः १४०२. मित्रभूः
५१७/१४३४. मेढ़म् १४०३. मित्रहू:
१००/१४३५. मेदितम् १४०४. मित्वा
१३०१४३६. मेदुरः १४०५. मिन्नः ४१०,६३१,६४५/१४३७. मेरुदृश्वा १४०६. मित्रवान् ६३१,६४५/१४३८. म्लास्नुः १४०७. मीढ्वान्
६१४|१४३९. यजमान: १४०८. मुखत:कारम् ५६९/१४४०. यज्ञः १४०९. मुखत:कृत्य ५६९/१४४१. यज्ञदत्तः १४१०. मुखतः कृत्वा ५६९/१४४२. यज्वा १४११. मुखतोभावम् ५७२/१४४३. यज्वानो १४१२. मुखतो भूत्वा ५७२/१४४४. यत १४१३. मुखताभूय
५७२/१४४५. यतवान् १४१४. मुञ्जन्धयः
२६०१४४६. यत्करः १४१५. मुण्डयितार:
३६११४४७. यत्नः १४१६. मुरः
१०९/१४४८. यथाकारम् १४१७. मुरों
१०९/१४४९. यव्यङ् १४१८. मुवः
१०८ १४५०. यन्तिः १४१९. मुवी
१०८/१४५१. यमः १४२०. मुष्टिघातं चौरं हन्ति ५४७/१४५२. यम्यम् १४२१. मुष्टिन्धमः
२६२/१४५३. यशस्करी विद्या १४२२. मुष्टिन्धयः
२६२/१४५४. यष्टिग्रहः १४२३. मू:
१०८,१०९/१४५५. यष्टिग्राह: १४२४. मूति:
१०८/१४५६. याच्या १४२५. मूर्तः
१०९/१४५७. याच्याः १४२६. मूर्तिः
१०९/१४५८. यायः १४२७. मूलकेनोपदंशम् १५५,५५८/१४५९. यायजूक: १४२८. मूलकोपदंशं भुङ्क्ते १५५/१४६०. यायावरः १४२९. मूलकोपदंशम् ५५८/१४६१. यावज्जीवमधीते १४३०. मृज्यम्
१८९/१४६२. यावद्वेदं भुङ्क्ते
३८८ ३३१ ३६६ ३५५ ४७८ ५१७ ३३७ ३३७ ११२ ११२ २५४ ४७८ ५३९ ६०३ ११४
३९३ ५४१ ५४१

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