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________________ ३६ ३८ ३८ یہ لہ لہ परिशिष्टम्-८ १२०७. प्रयम्य ११४/१२३९. प्रस्तीतवान् ९२,६५३ १२०८. प्रयुक् ३०२/१२४०. प्रस्तीमः ६५३ १२०९. प्रयोज्यो भृत्य: ५९८/१२४१. प्रस्तीमवान् ६५३ १२१०. प्रलम्भः ___५५/१२४२. प्रस्थम्पचो माणवक: २६५ १२११. प्रलापी ३७२/१२४३. प्रस्थाय १२१२. प्रवत्य ११३/१२४४. प्रस्थायुकः ३८२ १२१३. प्रवचनीय उपाध्यायः ४९९/१२४५. प्रस्रावः ४४२ १२१४. प्रवाच्यः ५९७/१२४६. प्रस्वेदित: १२१५. प्रवादो ३७२/१२४७. प्रहत्य ११३ १२१६. प्रवाय ९६/१२४८. प्रह्लनः १२१७. प्रवासी ३७२/१२४९. प्रह्लनवान् १२१८. प्रवाहिका ४९४/१२५०. प्रतः २१२ १२१९. प्रव्याय ९७/१२५१. प्रक्षीणः १२२०. प्रव्राज: ५९५/१२५२. प्रक्षीणमिदं छात्रस्य १२२१. प्रशंसा ४८७/१२५३. प्रक्षीणवान् १२२२. प्रशमय्य ७९/१२५४. प्रक्षीय १२२३. प्रशान् १०३,६०६/१२५५. प्रक्षेदित: १२२४. प्रशामौ ६०८/१२५६. प्रातरित्वा १२२५. प्रश्न: १०६,४७८/१२५७. प्राप्तमनेन ५७८ १२२६. प्रष्ठवाट २८९/१२५८. प्राप्तो ग्रामं भवान् । ५७७ १२२७. प्रष्ठौहः २८९/१२५९. प्राप्तो ग्रामो भवता ५७७ १२२८. प्रसत्य ११३,१२५/१२६०. प्रावरः ४५१ १२२९. प्रसवी ३८४|१२६१. प्रावार: ४५१ १२३०. प्रसाय १२५/१२६२. प्रियंवदः २६७ १२३१. प्रसुप्तं भवता ५७७/१२६३. प्रियः १२३२. प्रसुप्तो भवान् ५७७/१२६४. प्रियकार: २६९ १२३३. प्रसूः ३०२/१२६५. प्रियङ्करः २६९ १२३४. प्रस्कन्दनः ५७९/१२६६. प्रियङ्करणं शीलम् २८४ १२३५. प्रस्तार: ४४० १२६७. प्रियम्भविष्णुः २८७ १२३६. प्रस्तारपङ्क्तिः ४४१/१२६८. प्रियम्भावुक: २८७ १२३७. प्रस्ताव: ४४२/१२६९. प्लवगः २७४ १२३८. प्रस्तीत: १२,१००,६५३/१२७०. फलेग्रहिः २५७ مہ २९६ २१०
SR No.023091
Book TitleKatantra Vyakaranam Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJankiprasad Dwivedi
PublisherSampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
Publication Year2005
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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