Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 793
________________ ४०१ १९१ परिशिष्टम्-८ ७५५ १०७९. पाचको व्रजति ४१७/११११. पुरग: २७४ १०८०. पाचयाञ्चकृवान् ३४२/१११२. पुरन्दर: ५९ १०८१. पाठः ७१११३. पुरुषवाहं वहति ५५२ १०८२. पाठकः ७/१११४. पुरोडा यज्ञीयपिष्टकम् २९३ १०८३. पाणिघः २८२/१११५. पुरौ १०८४. पाणिन्धमः २६२/१११६. पुष्पन्धयः २६० १०८५. पाणिन्धयः २६२/१११७. पुष्पप्रचाय: ४५३ १०८६. पाण्युपकर्षम् ५६१/१११८. पुष्यः १०८७. पादः ४२३/१११९. पू: ४०१ १०८८. पादघातं भूमिं हन्ति ५४८/११२०. पूजा ४९१ १०८९. पादभाक् २८७/११२१. पूजार्हा स्त्री २४३ १०९०. पापकृत् ३२७/११२२. पूजितः ४१० १०९१. पायः ८११२३. पूत्वा ६२२ १०९२. पायकः ८/११२४. पूना यवागू: ६४५ १०९३. पायसभोजिकाम् ४९५/११२५. पूरितः ६४३ १०९४. पाय्यं मानम् १९७/११२६. पूर्णः ६४३ १०९५. पारगः २७४|११२७. पूर्वं भुक्त्वा व्रजति ५३४ १०९६. पारयः २१५/११२८. पूर्वं भोजं व्रजति ५३४ १०९७. पारयिष्णुः ७६,३६३/११२९. पूर्वङ्गमाः पन्थान: २७२ १०९८. पार्श्वशयः २४८/११३०. पूर्वसर: २५० १०९९. पाश्ोपपीडं शेते ५६१/११३१. पूर्वसरी ११००. पितृघाती ३२५/११३२. पृष्टः १०६ ११०१. पितृपोषम् ५४९/११३३. पृष्ट्वा १०६ ११०२. पित्तघ्नं घृतम् २८० ११३४. पृष्ठशयः ११०३. पिपतिषा ४८७११३५. पेचिवान् ३४२,६१२ ११०४. पिपासा ४८७/११३६. पेस्वरः ३९४ ११०५. पीनं मुखम् ८६/११३७. पोपुवः ३९२ ११०६. पुण्यकृत् ३२७/११३८. प्रकृत: कटं भवान् ५७७ ११०७. पुमनुजः ३३५/११३९. प्रकृत: कटो भवता ५७७ ११०८. पुरः ४०१/११४०. प्रकृत्य ६२ ११०९. पुरःसरः २४९/११४१. प्रखन्य १२५ १११०. पुरःसरी २४९/११४२. प्रखाय १२५ २५० २४८

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