Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 791
________________ T ७५३ ५६८ ८० परिशिष्टम्-८ ९५१. निद्रालु: ३८६ / ९८३. नीचैः कृत्वा ९५२. निधिः ४७९/ ९८४. नीत्तम् १३६ ९५३. निनदः ४६४ ९८५. नीवारा: ९५४. निनादः ४६४/ ९८६. नुत्त: ९५५. निन्दकः ३७५/ ९८७. नुत्तवान् ९५६. निपठः ४६४/ ९८८. नुन्न: ६५२ ९५७. निपत्या ४८४/ ९८९. नुनवान् ६५२ ९५८. निपाठः ४६४/ ९९०. नृत्यमानाः ३५६ ९५९. निमाय ९९१. नेत्रम् ४०४ ९६०. निमूलकाषं कषति ५४४,५५७ ९१२. नोनुव: १७ ९६१. नियमः ४६३/ ९९३. न्यकुः ५९३ ९६२. नियाम: ४६३/ ९९४. न्यर्णः ६४० ९६३. नियोज्यो भृत्य: ५९८ ९९५. न्यादः ४६१ ९६४. निरक्षी २०९/ ९९६. न्यायः ४५६,५०४ ९६५. निर्वाणोऽग्निः ६५४/ ९९७. न्युब्जः ६०० ९६६. निर्वाणो भिक्षुः ६५४/ ९९८. पक्तये व्रजति ४१८ ९६७. निलयः ५०२/ ९९९. पक्ता १५७,२०४,५९३ ९६८. निशाकरः २५४/१०००. पक्तिः ४८१ ९६९. निशात: १३१/१००१. पक्तुं व्रजति ४१७ ९७०. निशाति: १३१/१००२. पक्तिमम् ४७७ ९७१. निशित: १३१/१००३. पक्व: ६५३ ९७२. निशितिः १३१/१००४. पक्ववान् ६५३ ९७३. निश्चायः ४३४/१००५. पच: २०६,५७४ ९७४. निस्वनः ४६४/१००६. पचता छात्रेण ३४६ ९७५. निस्वान: ४६४/१००७. पचनाय व्रजति ४१८ ९७६. निषद्या ४८४/१००८. पचन्तं छात्रं पश्य ३४५ ९७७. निष्पाव: ४४३/१००९. पचमानं छात्रं पश्य ३४६ ९७८. निष्पावौ ४३५/१०१०. पचमानः १९,३५०,३५४ ९७९. निहवः ४६८/१०११. पचमानेन छात्रेण ३४६ ९८०. नी: ३०२/१०१२. पचा ४९० ९८१. नीचै:कारम् ५६८/१०१३. पटुमानिनी ३१६,३१९ ९८२. नीचैःकृत्य ५६७१०१४. पटुमानी ३१६,३१९

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