Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
View full book text
________________
८२३. दुःशासनः ८२४. दुद्यूषति
८२५. दुराढ्यम्भवम् ८२६. दुर्दर्श:
८२७. दुर्दर्शन: ८२८. दुर्धर्षः
८२९. दुर्धर्षणः ८३०. दुर्मर्षः ८३१. दुर्मर्षणः ८३२. दुर्योध: ८३३. दुर्योधनः
८३४. दुष्करः
८३५. दुष्पानः
८३६. दुष्प्रलम्भः
८३७. दून:
८३८. दूनवान्
८३९. दूरगः ८४०. दूरेपाकः
८४१. दूषण:
८४२. दृढो बलवान्
८४३. दृतिहरिः
८४४. दृशदकः देयम्
८४५. ८४६. देवदत्तः
८४७. देवद्र्यङ्ग्
८४८. देवभूति: ८४९. देवापिः
८५०. देवित्वा
८५१. देहः
८५२. दोला
८५३. दोषी
८५४. दोही
परिशिष्टम् - ८
५०९/८५५. द्युतितम् १०६ | ८५६. द्युतित्वा
५०७ ८५७. द्यूतः
५०९ | ८५८. द्यूतना
५०९ |८५९. द्योतितम्
५०९ ८६०. द्योतित्वा
५०९ | ८६१. द्रुघणः
५०९ ८६२. द्रोणम्पचा स्थाली
५०९ |८६३. द्विकरः
५०९ | ८६४. द्विज:
५०९ |८६५. द्विट्
५०६ ८६६. द्विपः
५०८ | ८६७. द्विषन् ५५ | ८६८. द्विषन्तपः
६४७ ८६९. द्विषन्तौ
द्वेषी
३०२
२३६
३५८
५९
३५८
६४७ |८७०.
३६९
५६०
२७४ ८७१. द्व्यङ्गुलोत्कर्षम् ५९४ | ८७२. यहतर्षं गाः पाययति ५६६ २०७ ८७३. द्व्यहाभ्यासं गाः पाययति ५६६
२७१
२४५
२४५
२५४
३१०
६३९ |८७४. धनञ्जयोऽर्जुनः
२५६ | ८७५. धनुर्ग्रहः
१७ | ८७६. धनुग्रहः
१७० ८७७. धनुष्करः
५१७ ८७८. धर्मावभाषी
७५१
३७
३१
१०६
१०६
३७
३१
४७२
२६५
२५४
३३५
६०४ ८७९. धर्षितः
५१७ | ८८०. धर्षितवान्
२५७ | ८८१. धवित्रम्
२८ ८८२. धात्री
२१८ | ८८३. धान्यमायः
४९१ ८८४. धाय:
३६९ | ८८५. धाय्या सामिधेनी
३६९ ८८६. धारयः
३५
३५
४०६
४०३
२३१
२१८, ४३६
१९७ २१४

Page Navigation
1 ... 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824