Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay
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परिशिष्टम्-६
७२५ ६१. आदायचरी २४८/९६. उपलभ्यं धनम्
५६ ६२.आनायः ५०५/९७. उपसत्
३०१ ६३. आपण: ५०२/९८. उपसर्या
१७६ ६४. आमः १०.९९. उपाध्यायः
४३५ ६५. आयुधम्
४७४/१००. उपेयिव् ६६.आविर्यम् ६३८/१०१. उरङ्गम:
२७३ ६७. आविध: ४७४/१०२. उरश्छदः
५०१ ६८.आशितम् २७० १०३. उष्ट्रक्रोशी
३११ ६९. आशितम्भवम् २७० १०४. उष्णिक्
३०० ७०.आशितम्भवा २७० १०५. ऊतिः
६५६ ७१. आशी: २२३ |१०६. ऊर्णाय:
५८४ ७२.आहव: ४६८/१०७. ऋत्विक्
३०० ७३. आहारः ४२७,५०४/१०८. एकवस्तु
४० ७४. आहावः ४६८/१०९. एकाधिकरणम्
३४५ ७५.इयान् ६०१/११०. एतावान्
६०३ ७६. इरम्मदो हस्ती
२६६ /१११. ओकः ४२३, ४२४,५९२ ७७.इष्टिः ४८० ११२. कच्छप:
१४७,२३५ ७८. ईषत्करः ५०६/११३. कन्यादर्श वरयति
५३९ ७९. ईषदाढ्यम्भवं भवता ५०६/११४. करः
५०१ ८०.ईषदाढ्यम्भवो भवान् ५०६ /१५५. कर्ता ८१. उक्थशा यजमान: २९२ ११६. कर्तृकर्मणी ८२.उखास्रत् २९६ /११७. कर्म
२२७ ८३.उत्तमर्णः ६५२ ११८. कलिङ्गजगत्
१२० ८४. उत्तानशयः
२४७/११९. कल्याणप्रतीक्षा ८५. उदकस्पर्श:
२९८/१२०. कल्याणाचारा २३१,२३२ ८६.उदङ्कः ५०४|१२१. काकगुहा:
२३९ ८७. उद्घः ४७३ /१२२. काण्डकार:
२२९ ८८.उद्घन:
४७१ १२३. काम: ८९.उद्ध्यो नदः
१९० १२४. कामम् ९०.उद्यमनम्
२४१ १२५. कायः ९१. उद्यानपुष्पभञ्जिका ४९४/१२६. कारक:
५७२ ९२.उपकारि १४७/१२७. कारकम्
४२७ ९३. उपचाय्योऽग्निः २०१ १२८. कारकशक्तिः
३१८ ९४. उपपदम् १४७,१४८,१५४,२२८/१२९. कारणम्
४९८ ९५.उपमानम् ३०३/१३०. कारुः
४१०, ५८१
५७२
४०
२३२
२३२
२३२
४५३

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