Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 764
________________ ७२६ 0 . 0 २३६ २२६ २९८ ५५० १३१. काल्या १३२.कियान् १३३. कुण्डपाय्यः १३४. कुम्भकार: १३५. कुरुचर: १३६. कुरुचरी १३७. कुर्वत्कल्प: १३८. कुर्वत्तर: १३९. कुर्वद्भक्तिः १४०. कुर्वद्रूप: १४१. कुर्वाणभक्तिः १४२. कृत् १४३. कृत्रिमम् १४४. कृषिः १४५. केशग्राहम् १४६. कौर्वत: १४७. क्रमः १४८.क्रय्यः १४९. क्रियान्तरम् १५०. क्रोशहः १५१. क्रौञ्चबन्धं बन्धः १५२. क्लेशक: १५३.क्षमः १५४. क्षय्यम् १५५. क्षिप्नुः १५६.खशयः १५७. गलेचोपक: १५८. गिरिश: १५९. गुणी १६०. गुण्यन् १६१. गृध्नुः १६२. गृहम् १६३. गोघ्नोऽतिथि: १६४. गोचर: १६५. गोत्रम् कातन्त्रव्याकरणम् १७६/१६६. गोविन्दः ६०२/१६७. गोषा: १९९/१६८. गोष्पदप्रम् १४७, १५०,२२६ /१६९. गोसंख्य: २४८/१७०. गोसन्दः २४८/१७१. ग्रहणम् ३०५, ३०६ ३४३,३४४|१७२. ग्रामसंस्थ: २३५ ३४४|१७३. ग्रामानुष्ठः ३४३, ३४४|१७४. ग्राही २०८ ३४३, ३४४/१७५. घटग्रहः २४४ ३४४/१७६.घीकार: २, ४९७, ५७३ /१७७.घृतस्पृक् ४७६ /१७८. चक्रबन्धं बन्ध: ५८१ /१७९. चतु:सूत्री २९९ ५५९/१८०. चर्चापाव: २२४ ३४४/१८१. चलत्पताकं गृहम् ३४४ ५०२ /१८२. चार्वाघाट: २७७ ६५ १८३.चितिः ४५४, ४५५ ५६५ /१८४.चित्योऽग्निः २७६ १८५.चूडकनाशं नष्टः ५५१ /१८६.चेयः ३७४|१८७.छत्रम् २३२ १८८. छदिः ६४/१८९. जनजगत् १२० ३६६ १९०.जनौः ६५४ २४७/१९१.जयी ३८४ २०४/१९२. जय्यम् ६४ २७५/१९३.जलजम् २५ १९४. जाति: ३०५,३०७,३०८ ३७/१९५. जारः ४२७ ३६६ /१९६.जीवकः २१९/१९७.जूः ४०१ ५७९ १९८.ज्णौ ५०२/१९९. तण्डुलनिश्चायः ४३४ ४६ २००. तत्करः २५३ ०० २२३

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