Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 769
________________ ७३१ ५५४ २४४ १८९ ३८७ परिशिष्टम्-६ ४८१.संचाय्य: १९९/५०८. सुवर्णनिधायं निहितम् ४८२. संस्तावो देश: ४४३/५०९, सूत्रग्राहः ४८३.सत्यकार: ४९/५१०. सूर्य: ४८४. सध्यङ् ६०४/५११. सृमरः ४८५.सन्तिः ५१७/५१२. सेट ४८६.सन्दः २११/५१३. सेनाचर: ४८७.समस्थ: २३५/५१४. सेनाचरी ४८८. समावर्तनीयो गुरु: ४९८/५१५, सोमविक्रया ४८९.समुत्थम् ४११/५१६. सोमसुत् ४९०.समूलम् ५४४/५१७ स्तनन्धयः ४९१. सम्यङ् ६०४/५१८ स्तनन्धयी ४९२.सरसिजम् ३३३/५१९. स्तनप्रधायः ४९३. सरूप: १६१/५२०. स्यनुजः ४९४ सर्वसहः ५८/५२१. स्थायी ४९५. सर्वसहा २७१/५२२. स्थिर: ४९६. सहयुध्वा ३३१/५२३. स्नानीयम् ४९७. साधुकारी ३०५,३६०, ,३६१/५२४. स्नेहनम् ४९८.साधुदायी ३०५/५२५. स्पर्शः ४९९. साधुप्रवकः २२३/५२६. स्रक् ५००.सार: ४२४/५२७ स्वाङ्गम् ५०१. साहयः २१३/५२८. हन्तिः ५०२.सिद्धाप्रयोगः ५३७/५२९. हलि: ५०३.सिध्यः १९१/५३०. हस्तादानम् ५०४.सुकरः ५०६/५३१. हायन: ५०५.सुखार्थम् ३४४/५३२. हायनाः ५०६. सुग: २७४/५३३. हृदयङ्गमा वाचः ५०७.सुदामा २९४/५३४. हावाम: २४८ २४८ ३२९ ३२८ २६० २६० २३८ ३३४ २०८ ४२४ ४९८ ५४९ ४२३ ३०० ८४,५६२ ५१७ १८८ ४५३ २२२ २२२ २७२ २३१ NO- On

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