Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 785
________________ ७४७ ६५२ ६५२ १२३ २४४ ३४३,३५१ ३९८ ३८० २५४ १६४ ४०६ परिशिष्टम्-८ ५६७. गोष्पदपूरं वृष्टो देवः ५४३ |५९९. घ्रात: ५६८. गोष्पदप्रं वृष्टो देवः ५४३ ६००. घ्रातवान् ५६९. गोसन्दायो व्रजति ४१९६०१. घ्वावा ५७०. गोसंख्यः २३९६०२. चंखन्यते ५७१. ग्रथित्वा ३३/६०३. चक्रधरः ५७२. ग्रन्थित्वा ३३ |६०४. चक्रबन्धं बन्धः ५७३. ग्रहः २१९, ४६०६०५. चक्राण: ५७४. ग्रामं गमी ४१४/६०६. चक्रि: ५७५. ग्रामग: २७४/६०७. चङ्क्रमण: ५७६. ग्रामणिम्मन्यो ‘दास ४४६०८. चतुष्करः ५७७. ग्रामसंस्थ: २३६/६०९: चयनीयम् ५७८. ग्रामस्तैर्यात: ५८३/६१०. चरित्रम् ५७९. ग्रामस्थ: १५०/६११. चरिष्णुः ५८०. ग्राह: २१९/६१२. चरुः ५८१. ग्राही २०९/६१३. चर्चा ५८२. ग्लान: ६४६ |६१४. चर्मपूरं ददाति ५८३. ग्लानवान् ६४६६१५. चर्यम् ५८४. ग्लास्नुः ३६६/६१६. चल: ५८५. घटा ४९०६१७. चलनः ५८६. घट्टना ४९३ ६१८. चाखायते ५८७. घनः ४७०/६१९. चाल: ५८८. घनम् ४७० ६२०. चिकीर्षुः ५८९. घस्मरः ३८८/६२१. चित्योऽग्निः ५९०. घात: ७,९६२२. चित्रकरः ५९१. घातक: ७,९/६२३. चिन्ता ५९२. घास: १३९/६२४. चिन्वन् ५९३. घृतपावा २९५/६२५. चिन्वानाः ५९४. घृतपेषम् ५४९/६२६. चूडकनाशं नष्ट: ५९५. घृतम् ११२/६२७. चूर्णपेषं पिनष्टि ५९६. घृतस्पृक् ६९,२९८६२८. चूर्त: ५९७. घृतोदङ्कः ५०५/६२९. चूर्त्तिः ५९८. घ्राण: ६५२/६३०. चेतयः २१६ ३७७ १२५ २१६ ३९७ २०२ २५४ ४९१ २० २१ ५५४ ५४५ १३३ १३३ २१४

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