Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 786
________________ 3 9 m on WWW ७४८ कातन्त्रव्याकरणम् ६३१. चेतव्यम् १६४ ६६३. जनौः ६५८ ६३२. चेयम् १६४, १६८६६४. जपः ४६२ ६३३. चेलनोपं वृष्टो देवः ५४४ ६६५. जप्यम् १६९ ६३४. चौरङ्कारमाक्रोशति ५३५ ६६६. जयी ३८५ ६३५. छत्त्रम् ४० ६६७. जय्यम् ६३६. छत्रः ६४३ ६६८. जरती ६३७. छदिः ४० ६६९. जरन् ३३७ ६३८. छद्म ४० ६७०. जरा ६३९. छादित: ६४३ ६७१. जरित्वा ६२४ ६४०. छित् ३०२ ६७२. जरीत्वा ६२४ ६४१. छिदा ४९० ६७३. जलजम् १५३, ३३४ ६४२. छिदुरः ३८९ ६७४. जलधिः ४७९ ६४३. जगत् १२०,४०२ ६७५. जल्पाक: ३८३ ६४४. जगन्वान् ६०७,६१३ |६७६. जल्पाकी ३८३ ६४५. जग्धः १३७.१७७. जवन: ३८० ६४६. जग्द्धवान् १३८ ६७८. जक्षिवान् ६४७. जग्द्धि : १३८ ६७९. जागरा ४८८ ६४८. जग्ध्वा ३८ ६८०. जागरितः २३ ६४९. जग्मिवान् १३ |६८१. जागरूकः २३,३८९ ६५०. जग्मुषः ६०७ ६८२. जागर्त्तिः २३,६१७ ६५१. जग्मुषी ०७ ६८३. जातः १२४ ६५२. जघन्वान् ६१३ ६८४. जाति: १२४ ६५३. जघ्निवान् ६१३ ६८५. जायाघ्नः २७९,२८० ६५४. जाकरः २५४ ६८६. जित् ३०२ ६५५. जजागर्वान् ३४३ ६८७. जित्वरः ३९४ ६५६. जज्ञि: ३९८ |६८८. जिष्णुः ३६५ ६५७. जञ्जपूक: ३९० ६८९. जीन: ६५८. जनः ७ ६९०. जीनवान् ६४७ ६५९. जनक: ७ ६९१. जीवकः ६६०. जनमेजयः ४९,२५९/६९२. जीवग्राहं गृह्णाति ५४६ ६६१. जनाव: ६५८६९३. जीवनाशं नष्टः ५५२ ६६२. जनावौ ६५८६९४. जुवः १०८ ६१२ ६४७ २२३

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