Book Title: Katantra Vyakaranam Part 04
Author(s): Jankiprasad Dwivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 783
________________ ६७ ६७ परिशिष्टम्-८ ७४५ ४३९. कुण्डपाय्य: १९९/४७१. क्रूतवान् ७१ ४४०. कुरुचर: २४८/४७२. नयिता ३८१ ४४१. कुरुचरी २४८ ४७३. क्रमः ४४२. कुमारघाती २७८/४७४. क्रयः ४६० ४४३. कुम्बा ४९१/४७५. क्रय्या गौः ४४४. कुम्भकार: १५०,२२९/४७६. क्रव्यात् ३०० ४४५. कुक्षिम्भरिः २५८/४७७. क्रियमाण: ३५४ ४४६. कूलङ्कषा नदी २६८/४७८. क्रिया ४८५ ४४७. कूलन्धयः २६०/४७९. क्रियाम् ४९६ ४४८. कूलमुद्जा नदी २६५/४८०. क्रुङ् २९७ ४४९. कूलमुद्वहः २६६/४८१. क्रोधजम् १५३, ३३४ ४५०. कृतः २२,३३५/४८२. क्रोधनः ३७७ ४५१. कृत: कट: श्वो भविता ५२१ ४८३. क्रोशहः २७७ ४५२. कृत: कटो भवता ५७५/४८४. क्रौञ्चबन्धं बन्धः ४५३. कृतम् ५००/४८५. क्लमी ३६८ ४५४. कृतवान् २२,३३६/४८६. क्लिशितः ४५५. कृति: ४८०, ४८५/४८७. क्लिशितवान् ६२७ ४५६. कृतिम् ४९६ ४८८. क्लिशित्वा ६२२ ४५७. कृत्रिमम् ४७७/४८९. क्लिष्टम् ६२७ ४५८. कृत्य: कटो भवता ५१६/४९०. क्लिष्टवा ६२२ ४५९. कृत्यम् १८९/४९१. क्लेशक: ४६०. कृत्या ४८५/४९२. क्लेशापहः २७८ ४६१. कृत्याम् ४९६,४९३. क्वण: ४६५ ४६२. कृत्वा अलम् १५४|४९४. क्वाण: ४६५ ४६३. कृपा ४९०४९५. खण: ३७७ ४६४. कृशः ६५६/४९६. खनकः २२१ ४६५. कृशित्वा ३२/४९७. खनकी २२१ ४६६. कृषिः ५८१ ४९८. खनित्रम् ४०६ ४६७. कृष्टपच्या: १९२ ४९९. खन्यते १२५ ४६८. केचित् ४५८/५००. खर्जः ५९५ ४६९. केशग्राहम् ५६०५०१. खलु कृत्वा ४७०. क्रूत: ७१/५०२. खशयः २४७ ६२७ ३७५ ५२३

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